Wednesday, 14 August 2013

रूह ने है मेरी मुझसे ये कहा..


रूह ने है मेरी मुझसे ये कहा..
तु डरता है क्या मुझे खोने से?
तु रहता है क्या इक दबे से कोने मे?
तु खुद को पहले तो सम्भाल ज़रा अन्धेरे मे अपनी परछाइ को सम्भाल ज़रा..
ये क्यूँ मै तुझसे घबरा सा जाता हूँ?
देख तुझे हैराँ मै क्यूँ परेशाँ सा हो जाता हूँ..
मै हूँ तेरे वजूदो मे बसा फिर भी तुझे क्युँ मै हार जाता हूँ?
तुझे अपना करने की खातिर आखिर मै खुद से क्युं लड जाता हूँ?
तु मेरा है ये भी खुद को समझाना होगा..
लगता है फिर से तुझे किसी बहाने गले लगाना होगा..
फिर से तुझे अपना बनाना होगा..!
ऐ ज़िन्दगी! लगता है फिर से तुझे मुझे गवाना होगा..
तभी शायद जा के कोई बात बनेगी..
तुझे अपने रूह से ज़ुदा कर फिर अपने रूह मे समाना होगा..!

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