तु रहा मुझसे बेखबर ऐ मेरे दोस्त
तेरे वजूदो को मैं खुद मे टटोलता रहा
तेरे सन्ग बिताए हर पल की दास्तां
यूँ ही कही पन्नों पे समेटता रहा
तु शायद कही मुझसे अन्जान रहा
मेरी वादों का शायद तुझे यकीन ना रहा
तु है मेरा हमसफर हमगुजर
क्या तुझे हैं इन बातों पे कोइ बहेस?
कर यार जो भी है तुझे मुझसे गर कोइ शिकवा
यूँ बिन तेरे कोइ बात रास नही आती
आखिर हुआँ क्या है मुझसे? मेरी खता क्या है?
बता तो मुझे तु इक बार सहीं
मैं किस तरह से तेरा रख्खु ख्याल?
मेरे दोस्त ! आज तो कर मुझे अपने करीब
आखिर मैं भी तो जानू वो थीं बात क्या?
जो रहा आज भी तु खामोश
मैने तो कर दी अपनी दिल की बात
मेरे यार तु भी तो कुछ सुना?
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