Friday, 23 August 2013

..हैं ये शाम कहीं मदहोस तेरे में..


..हैं ये शाम कहीं मदहोस तेरे में..
..मेरे होने का इसे एहसास नहीं..
..हैं ये बात कहीं अधूरी..
..इसे पूरा करने का कोइ बात ही नहीं..
..यूँ ही गुज़रना वक्त़ का और मेरा तेरे मे डूबे रहना..
..तेरे संग रातें तकना और ख्यालों मे तुझे अपना करना..
..यूं ही गुज़रना ज़िन्दगी का और मेरा खुद में डूबे रहना..
..संग तेरे ज़िन्दगी ज़ीना और संग तेरे होना..
..बस यहीं हैं कुछ बातें मेरी तेरी होंठों पे संजोना तेरे..
..तेरा ही बनके रहना..
..तेरे लबों पे ही बसे रहना..
..संग होना.. ..तेरे खुद को तेरे ही रंग रंगना..
..यहीं बस कुछ हैं ज़िन्दगी की तम्मनाएँ मेरी..
..तेरा हूँ और बस तेरा हो के ही रहना..
..और क्या ये शाम मेरी इतनी भी वफाई नहीं..
..जो मुझे भूल खुद बिछ्डन कर मिल जाए जा रकीब अपने रात से..!


Download This Poetry In Pdf Click Down..

..हैं_ये_शाम_कहीं_मदहोस_तेरे_में...pdf

No comments:

Post a Comment