Nitesh Verma Poetry
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Tuesday, 6 August 2013
आज़ फिर वहीं शाम आई है..
आज़ फिर वहीं शाम आई है..
बारिशों के बीच बनती तुम्हारी तस्वीर नजर आई है..
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आँखें है हल्की-हल्की नम सी मेरी..
लगता हैं आज फिर वही उल्फत..ए..रात मेरे हाथ आई है..!
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