Monday, 12 August 2013

मुझसे इतनी नफरत ना किया करो..!


यूँ ही कभी मेरा यहाँ आना बन्द हो जयेगा..
मुझसे इतनी नफरत ना किया करो..!
मुहब्बत ना तो कम से कम..
मेरी बातों से तो ना इन्कार किया करो!
माना तुम बडे.. तुम्हरी बातें बडी.. लेकिन इनका क्या..?
ये भी तो है एहसास मेरी इनसे तो ना तुम नजरे फेरा करो..!
माना वक्त़ ने है मुझसे तेरा मुँह फेरा..
मगर यूँ हालातो से हार मुझे मेरे रूह से जुदा ना किया करो!
मैं हार गया तुम्हारे सामने तुम भी तो यही चाहते थे ना..?
जिद थी तुम्हारी यही तो कम से कम ये बतया तो होता
तुम्हारी खातिर मेरी जीत क्या.. मेरी हार क्या..?
तुमने बताया तो होता यूँ इन्कार का मतलब मैं क्या समझू..?
क्या रख्का है आखिर इन बातो मे बहकी हुइ समाजो मे..?
आखिर है वो ऐसी क्या चीज जो मै तुम्हे दे नही सकता..?
मुहब्बत दी है तुम्हे अपनी..
तो और क्या मै तुम्हे अपनी ये ज़िन्दगानी नही दे सकता..?
तुम अपना हक मुझसे जता के तो देखते.. मुझे अपना बना के तो देखते..
मेरी जान मुहब्बत से ही कोइ बात जीती जाती है..
यूँ इन्कार और नफरत से हर बाज़ी हारी ही जाती है
बता दी मैने तुम्हे अपनी वो हर बात.. वो हर राज़..!
जिन्हें तुम परेशाँ यूँ ही अन्धेरो में ढूँढा करते थे..!
मुझे जो समझ आया वो मैने किया.. वो मैने लिख्खा.!
अब तुम्हे इन्कार है इन बातों से भी तो और मै क्या लिख्खु..?
तुम ही बताओ आखिर कहाँ खत्म होती है नफरत तुम्हरी..?
चलो फिर आओ हम शुरुआत वही से करते है..! 
आओ तो मेरे करीब सही तुम हम बात वही करते है..! 
जो तुम समझ सको.. मै समझ सकूँ.. हम समझ सके..
आओ करीब मेरे हम आज रात कोइ ऐसी करते है!
मेरी जान कोइ बात ऐसी करते है..! 

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