Monday, 31 March 2014
Nitesh Verma Poetry
[1] ..सब सयानें निकल गए..
..मतलब के लिए जुडा मुझसे..
..और फ़िर लात मार..
..आगे निकल गए..!
[2] ..एक दर्द था मेरा हिस्सा..
..एक दर्द था मेरा खिस्सा..
..निगाहें तुझपे पडी..
..और मैं खामोश हो गया..
..दर्द में जो मिला था मुझे तेरा हिस्सा..!
[3] ..अबकी बार भी ये हुआ हैं मुझे..
..खुद से ज़्यादा तेरे पे यकीं हुआ हैं मुझे..!
[4] ..तुमको फिर से सुनाऊँगां..
..मैं तेरे वादों के ख़िस्सें..
..भूला नहीं तुझे अब तक..
..फ़िर से आँखें पढकर तेरी दिखाऊँगां तुझे..!
..मतलब के लिए जुडा मुझसे..
..और फ़िर लात मार..
..आगे निकल गए..!
[2] ..एक दर्द था मेरा हिस्सा..
..एक दर्द था मेरा खिस्सा..
..निगाहें तुझपे पडी..
..और मैं खामोश हो गया..
..दर्द में जो मिला था मुझे तेरा हिस्सा..!
[3] ..अबकी बार भी ये हुआ हैं मुझे..
..खुद से ज़्यादा तेरे पे यकीं हुआ हैं मुझे..!
[4] ..तुमको फिर से सुनाऊँगां..
..मैं तेरे वादों के ख़िस्सें..
..भूला नहीं तुझे अब तक..
..फ़िर से आँखें पढकर तेरी दिखाऊँगां तुझे..!
..राज़नीति या विकास..
..मेरे बच्चों की खुशियाँ..
..मेरे प्रशासन ने तोडे है..
..मुझे कर बेरोज़गार..
..ज़ुर्म का बाज़ीगर मुझे बनाएँ हैं..
..हो गया हैं सब तहस-नहस..
..जो सजाएँ थे मैंनें सपनें सुहानें..
..प्रशासन ने जो मेरे बिगाडें हैं..
..सब आडे खडें हैं मेरे बच्चों के सहारें..
..कितना कुछ बदल गया मेरे समाज़ में..
..बच्चों के हाथ में मेरे तमन्चा..
..ये सियासी दावं-पेंच ने..
..मेरे गाल पे क्या करारा तमाचा मारा हैं..
..वोट मेरा और हुकूमत उनका..
..कहाँ तक ये गँवारा हैं..
..मकसद अब शायद बदलेंगें..
..मेरे बच्चों के आँखें में..
..फ़िर से सपनों सँज़ेगें..
..प्रशासन में परिवर्तन..
..फ़िर से ये छलावा सामनें आया हैं मेरे..
..देखे इस बार होता हैं क्या..
..राज़नीति या विकास..
..ये जो मुद्दा सामने उभर के आया हैं मेरे..!
..मेरे प्रशासन ने तोडे है..
..मुझे कर बेरोज़गार..
..ज़ुर्म का बाज़ीगर मुझे बनाएँ हैं..
..हो गया हैं सब तहस-नहस..
..जो सजाएँ थे मैंनें सपनें सुहानें..
..प्रशासन ने जो मेरे बिगाडें हैं..
..सब आडे खडें हैं मेरे बच्चों के सहारें..
..कितना कुछ बदल गया मेरे समाज़ में..
..बच्चों के हाथ में मेरे तमन्चा..
..ये सियासी दावं-पेंच ने..
..मेरे गाल पे क्या करारा तमाचा मारा हैं..
..वोट मेरा और हुकूमत उनका..
..कहाँ तक ये गँवारा हैं..
..मकसद अब शायद बदलेंगें..
..मेरे बच्चों के आँखें में..
..फ़िर से सपनों सँज़ेगें..
..प्रशासन में परिवर्तन..
..फ़िर से ये छलावा सामनें आया हैं मेरे..
..देखे इस बार होता हैं क्या..
..राज़नीति या विकास..
..ये जो मुद्दा सामने उभर के आया हैं मेरे..!
Sunday, 30 March 2014
..दिल रोता हैं बिन तेरे..
..दिल रोता हैं बिन तेरे..
..जब आँखें मेरी सूनी रहती हैं बिन तेरे..
..एहसास धडकनों से बाहर आते नहीं..
..इज़हार होंठों से सुनाएँ जाते नहीं..
..अंधेरों में यूं ही जीना अच्छा लगता हैं..
..बिन तेरे आसान काम मुश्किल लगता हैं..
..परेशां सा रहता हूँ मैं बिन तेरे..
..ज़ुदा सा रहता हूँ मैं बिन तेरे..
..आखिर यें हो क्या जाता हैं मुझे..
..यूं उदास रहता हूँ क्यूं बिन तेरे..
..दिल रोता हैं बिन तेरे..
..जब आँखें मेरी सूनी रहती हैं बिन तेरे..!
..जब आँखें मेरी सूनी रहती हैं बिन तेरे..
..एहसास धडकनों से बाहर आते नहीं..
..इज़हार होंठों से सुनाएँ जाते नहीं..
..अंधेरों में यूं ही जीना अच्छा लगता हैं..
..बिन तेरे आसान काम मुश्किल लगता हैं..
..परेशां सा रहता हूँ मैं बिन तेरे..
..ज़ुदा सा रहता हूँ मैं बिन तेरे..
..आखिर यें हो क्या जाता हैं मुझे..
..यूं उदास रहता हूँ क्यूं बिन तेरे..
..दिल रोता हैं बिन तेरे..
..जब आँखें मेरी सूनी रहती हैं बिन तेरे..!
..मैं सपना हूँ तेरा..
..मैं सपना हूँ तेरा..
..मगर आँखों में बसा अब तक नहीं..
..मैं साया हूँ तेरा..
..मगर रूह से तेरे अब तक जुडा नहीं..
..चाहता हूँ तुझे किस कदर..
..लफ़्ज़ों से ये जुडा पाया अब तक नहीं..
..दिल मेरा ये खामोश ही रहा..
..और निगाहों को मैं..
..तेरे चेहरे से हटा पाया अब तक नहीं..
..कैसा ये हाल हैं मेरा..
..साँसों को तेरे जुल्फ़ों से..
..रिहा कर पाया अब तक नहीं..
..क्या कमाया मैंनें ज़िन्दगी में..
..जो कहानी में मैंनें अब तक सुना पाया नहीं..
..सबने मुझे नज़रअंदाज़ किया..
..ये अंदाज़ अब तक मैं समझ पाया नहीं..
..मैं बातों में उल्झा रह गया उसके..
..किस्मत को मैं अब तक समझ पाया नहीं..!
..मगर आँखों में बसा अब तक नहीं..
..मैं साया हूँ तेरा..
..मगर रूह से तेरे अब तक जुडा नहीं..
..चाहता हूँ तुझे किस कदर..
..लफ़्ज़ों से ये जुडा पाया अब तक नहीं..
..दिल मेरा ये खामोश ही रहा..
..और निगाहों को मैं..
..तेरे चेहरे से हटा पाया अब तक नहीं..
..कैसा ये हाल हैं मेरा..
..साँसों को तेरे जुल्फ़ों से..
..रिहा कर पाया अब तक नहीं..
..क्या कमाया मैंनें ज़िन्दगी में..
..जो कहानी में मैंनें अब तक सुना पाया नहीं..
..सबने मुझे नज़रअंदाज़ किया..
..ये अंदाज़ अब तक मैं समझ पाया नहीं..
..मैं बातों में उल्झा रह गया उसके..
..किस्मत को मैं अब तक समझ पाया नहीं..!
Nitesh Verma Poetry
[1] ..तुम भी उसी समुन्दर से गुजर गयी..
..मेरी तरह तुम भी भंवरों के बीच फ़ँस गयी..
..ख़ामाखाह तडपते रहे हम खुदा की फ़रियाद में..
..और खुदा हमारी सज़दों से मुकर गये..!
[2] ..ये ज़िन्दगी का दस्तूर ही कुछ ऐसा हैं..
..मेरी जाँ..
..तुम तुम और सिर्फ़ तुम..
..मेरी मौत तक जो मुझमें बसी हो..!
..मेरी तरह तुम भी भंवरों के बीच फ़ँस गयी..
..ख़ामाखाह तडपते रहे हम खुदा की फ़रियाद में..
..और खुदा हमारी सज़दों से मुकर गये..!
[2] ..ये ज़िन्दगी का दस्तूर ही कुछ ऐसा हैं..
..मेरी जाँ..
..तुम तुम और सिर्फ़ तुम..
..मेरी मौत तक जो मुझमें बसी हो..!
Saturday, 29 March 2014
..जब माशूका से हो यारी..
..फ़िजा तक की पहुँच हैं..
..मेरी आसमां से यारी..
..कौन झुकेगा ऐ खुदा तेरे सज़दे में..
..जब माशूका से हो यारी..!
..मेरी आसमां से यारी..
..कौन झुकेगा ऐ खुदा तेरे सज़दे में..
..जब माशूका से हो यारी..!
..मेरी आशिकी को तुमने तमाशा बना दिया..
..मेरी आशिकी को तुमने तमाशा बना दिया..
..भरी महफ़िल में तुमने मेरा नाम बेवफ़ा बता दिया..
..कुछ और सुनाता मैं अपने आशिकी की दास्तां..
..तुमने मेरा प्यार झूठा बता दिया..!
..भरी महफ़िल में तुमने मेरा नाम बेवफ़ा बता दिया..
..कुछ और सुनाता मैं अपने आशिकी की दास्तां..
..तुमने मेरा प्यार झूठा बता दिया..!
Friday, 28 March 2014
..शर्म आँखों में देख तुझे मेरे भर जाए..
..जानें फ़िर कौन से..
..अंज़ाने राहों पे तु कभी मिल जाए..
..शर्म आँखों में देख तुझे मेरे भर जाए..
..ज़िस मकसद से मैंनें गिराया था..
..तुझे उस मुकाम से..
..फ़िर वहीं मुकाम पे दोनों मिल जाए..
..तो क्या हो जाए..
..ज़रुरत नहीं अब इस ज़ुर्रत की..
..तुमसे फ़िर आशिकी की जाए..
..मुहब्बत की राज़-भरी किताब..
..फ़िर से खोली जाए..
..हो गया सितमगर..
..जो इस आशिकी में होना था..
..जरुरत नहीं सब बात..
..भरी महफ़िल में खोली जाए..!
..अंज़ाने राहों पे तु कभी मिल जाए..
..शर्म आँखों में देख तुझे मेरे भर जाए..
..ज़िस मकसद से मैंनें गिराया था..
..तुझे उस मुकाम से..
..फ़िर वहीं मुकाम पे दोनों मिल जाए..
..तो क्या हो जाए..
..ज़रुरत नहीं अब इस ज़ुर्रत की..
..तुमसे फ़िर आशिकी की जाए..
..मुहब्बत की राज़-भरी किताब..
..फ़िर से खोली जाए..
..हो गया सितमगर..
..जो इस आशिकी में होना था..
..जरुरत नहीं सब बात..
..भरी महफ़िल में खोली जाए..!
Nitesh Verma Poetry
[1] ..सँभालें कदम अब सँभलतें नहीं..
..गुनाह अब सर से हटते नहीं..
..किए हैं जो ज़ुर्म मैंनें इतने..
..किसी की दुआओ में भी..
..अब असर दिखते नहीं..!
[2] ..कोई कैसे सँभालेगा मेरे अवारगी को..
..मुहब्ब्त में मैंनें इंसा को बेचे हैं..!
[3] ..जरिया नहीं कोई अपराध कूबूलनें को..
..ऐ खुदा तेरे सज़दें में मैंनें..
..यूं ही सर झुका रख्खा हैं..!
[4] ..इश्क के नशे में मैंनें जो गुनाह किए हैं..
..इतने किए हैं कि..
..रब के अलावा कोई और सुनेगा नहीं..!
[5] ..दस्तूर मेरी ज़िन्दगी का..
..पढना इतना आसान भी नहीं..
..वक्त के ज़रिए जो मैंनें हुनर सीखे हैं..!
[6] ..अब क्या मौत में भी कुछ दूरी बाकी हैं..
..जो मैंनें ज़िन्दगी सँभाल के रख्खें हैं..!
..गुनाह अब सर से हटते नहीं..
..किए हैं जो ज़ुर्म मैंनें इतने..
..किसी की दुआओ में भी..
..अब असर दिखते नहीं..!
[2] ..कोई कैसे सँभालेगा मेरे अवारगी को..
..मुहब्ब्त में मैंनें इंसा को बेचे हैं..!
[3] ..जरिया नहीं कोई अपराध कूबूलनें को..
..ऐ खुदा तेरे सज़दें में मैंनें..
..यूं ही सर झुका रख्खा हैं..!
[4] ..इश्क के नशे में मैंनें जो गुनाह किए हैं..
..इतने किए हैं कि..
..रब के अलावा कोई और सुनेगा नहीं..!
[5] ..दस्तूर मेरी ज़िन्दगी का..
..पढना इतना आसान भी नहीं..
..वक्त के ज़रिए जो मैंनें हुनर सीखे हैं..!
[6] ..अब क्या मौत में भी कुछ दूरी बाकी हैं..
..जो मैंनें ज़िन्दगी सँभाल के रख्खें हैं..!
Thursday, 27 March 2014
..इन अँधेरों में वर्मा..
..क्या तलाशतें रहते हो तुम इन अँधेरों में वर्मा..
..सपनों के सिवा यहाँ और कुछ नहीं मिलता..!
..सपनों के सिवा यहाँ और कुछ नहीं मिलता..!
Wednesday, 26 March 2014
..कोशिश गर की हैं तूने..
..कोशिश गर की हैं तूने..
..तो फिर काहे का तू हारा हैं..
..हिम्मत दिखा अपनी तूने..
..किस्मत को एक करारा तमाचा मारा हैं..
..दौलत भले से तू ना कमा पाया हो..
..इज़्ज़त बनाने में जो तूने गँवाया हैं..
..किस्मत के सहारें तूने जो बनाया था..
..दर-बदर तूने किस्मत पे ही लूटाया हैं..
..गर किस्मत से तू जीत..
..हार को जीत बनाया हैं..
..तो फिर काहे का तू हारा हैं..
..मन्नतों के सहारे ना कुछ बनाया हैं..
..तो शबाब के चक्कर में..
..तूने क्यूं इन्हें गँवाया हैं..
..कोशिश गर की हैं तूने..
..तो फिर काहे का तू हारा हैं..
..हिम्मत दिखा अपनी तूने..
..किस्मत को एक करारा तमाचा मारा हैं..!
Tuesday, 25 March 2014
..ज़िन्दगी से गुज़रना..
..हैं शायद ये दस्तूर ज़िन्दगी का..
..किसी की मुहब्बत में पडना..
..और फ़िर तन्हा होके..
..ज़िन्दगी से गुज़रना..!
..किसी की मुहब्बत में पडना..
..और फ़िर तन्हा होके..
..ज़िन्दगी से गुज़रना..!
..तेरे ज़ाने के बाद..
..पन्नें भी सारें बिखरे पडे है..
..मेरे ख़िस्से की तरह..
..तेरे ज़ाने के बाद..
..ये भी मायूस पडे हैं..
..मेरे चेहरे की तरह..!
..मेरे ख़िस्से की तरह..
..तेरे ज़ाने के बाद..
..ये भी मायूस पडे हैं..
..मेरे चेहरे की तरह..!
..आहिस्ते से जो मैं तेरे सीने से लगा..
..आहिस्ते से जो मैं तेरे सीने से लगा..
..शोर साँसों की ज़मानें में गूँज़ गई..!
..शोर साँसों की ज़मानें में गूँज़ गई..!
..कमबख्त ये आँसू भी क्या चीज़ होती हैं..
..भींग जाती हैं हर चीज़ छू लेने के बाद..
..कमबख्त ये आँसू भी क्या चीज़ होती हैं..!
..कमबख्त ये आँसू भी क्या चीज़ होती हैं..!
..पहलू में कर लेते है ईश्क को मेरे..
..पहलू में कर लेते है ईश्क को मेरे..
..दूर से ही ईश्क में जी लेते है मेरे..!
..दूर से ही ईश्क में जी लेते है मेरे..!
..बस ये दिल हैं कि बेइमान हैं वर्मा..
..बस ये दिल हैं कि बेइमान हैं वर्मा..
..वर्ना यहाँ सब आसान हैं..
..गर मुश्किल में ये ज़ान हैं..!
..वर्ना यहाँ सब आसान हैं..
..गर मुश्किल में ये ज़ान हैं..!
..Jeeta hoon tere khwaboo me kahi to zinda hoon main..
..Basta hoon tere hontho pe kahi to zinda hoon main..
..Tujhme rahta hoon kahi to kahta hoon main..
Ishq me jeeta hoon to bin tere ishq me marta hoon main..
..Ishq karta hoon main to kahi kahta hoon main..
..Khwaboo me tere raat karta hoon main to kahta hoon main..
..Jeeta hoon ishq me tere to kahta hoon main..
..Raatoein me tujhe apna karta hoon to kahta hoon main..
..Ishq me jaa koi risk karta hoon to kahta hoon main..
..Tujhme rahta hoon kahi to kahta hoon main..!
Teri muhabbat me zinda hoon main bas..
Tu khus rahe barbadi dekh meri zinda hoon main bas..
Maut ke aksar bahane aate hai kareeb mere..
Tu hai kahi mujhme soch zinda hoon bas..
Raat ko aankhein meri khwaab sajati hai teri..
Bad'duao me hui teri duaoein se zinda hoon main bas..
Shaam dhalti nahi teri khwaboo ke bich zinda hoon main bas..
Sabera koi muskaan leke aayega..
Andherein me huye ek khwaab se zinda hoon bas..
Bhul jayengi shayad saansein bhi kabhi teri..
Girafat jo khud me ki thi mujhe to zinda hoon main bas..
Apne kiye vaadein ki tarah tod do is naam ko..
Khamakha..
Tere yaad mein zinda hoon main bas..!
..Basta hoon tere hontho pe kahi to zinda hoon main..
..Tujhme rahta hoon kahi to kahta hoon main..
Ishq me jeeta hoon to bin tere ishq me marta hoon main..
..Ishq karta hoon main to kahi kahta hoon main..
..Khwaboo me tere raat karta hoon main to kahta hoon main..
..Jeeta hoon ishq me tere to kahta hoon main..
..Raatoein me tujhe apna karta hoon to kahta hoon main..
..Ishq me jaa koi risk karta hoon to kahta hoon main..
..Tujhme rahta hoon kahi to kahta hoon main..!
Teri muhabbat me zinda hoon main bas..
Tu khus rahe barbadi dekh meri zinda hoon main bas..
Maut ke aksar bahane aate hai kareeb mere..
Tu hai kahi mujhme soch zinda hoon bas..
Raat ko aankhein meri khwaab sajati hai teri..
Bad'duao me hui teri duaoein se zinda hoon main bas..
Shaam dhalti nahi teri khwaboo ke bich zinda hoon main bas..
Sabera koi muskaan leke aayega..
Andherein me huye ek khwaab se zinda hoon bas..
Bhul jayengi shayad saansein bhi kabhi teri..
Girafat jo khud me ki thi mujhe to zinda hoon main bas..
Apne kiye vaadein ki tarah tod do is naam ko..
Khamakha..
Tere yaad mein zinda hoon main bas..!
..अए मुहब्बत..
..अए मुहब्बत अब भी क्या कोई दुश्मनी बाकी हैं..
..सयानें लोग मिलते नहीं की तू शुरू हो जाता हैं..!
..सयानें लोग मिलते नहीं की तू शुरू हो जाता हैं..!
Monday, 24 March 2014
..रास्तें से फ़िर मंज़िल की ओर चल दिए..
..रास्तें से फ़िर मंज़िल की ओर चल दिए..
..कंबल उठाएँ और फ़िर ठंडे रास्ते की ओर चल दिए..
..थकना मना था ये सुना था मैंनें..
..ज़िक्र उठाई तेरी और फ़िर सबेरा की ओर चल दिए..
..सब रास्तें से होकर गुजरना था मुझे..
..ये कविता में उठाई और मुश्किलों की ओर चल दिए..
..सब ये लाज़मी था मुझे ये तेरा बताना..
..एक गज़ल उठाई और फ़िर तेर दिल के ओर चल दिए..
..मुहब्बत के एक साथी थे सिर्फ़ मेरे तुम..
..ये एक लफ़्ज़ में उठाई..
..और फ़िर कहानी की ओर चल दिए..
..रास्तें से फ़िर मंज़िल की ओर चल दिए..
..कंबल उठाएँ और फ़िर ठंडे रास्ते की ओर चल दिए..!
..कंबल उठाएँ और फ़िर ठंडे रास्ते की ओर चल दिए..
..थकना मना था ये सुना था मैंनें..
..ज़िक्र उठाई तेरी और फ़िर सबेरा की ओर चल दिए..
..सब रास्तें से होकर गुजरना था मुझे..
..ये कविता में उठाई और मुश्किलों की ओर चल दिए..
..सब ये लाज़मी था मुझे ये तेरा बताना..
..एक गज़ल उठाई और फ़िर तेर दिल के ओर चल दिए..
..मुहब्बत के एक साथी थे सिर्फ़ मेरे तुम..
..ये एक लफ़्ज़ में उठाई..
..और फ़िर कहानी की ओर चल दिए..
..रास्तें से फ़िर मंज़िल की ओर चल दिए..
..कंबल उठाएँ और फ़िर ठंडे रास्ते की ओर चल दिए..!
Saturday, 22 March 2014
..नाम अपना जो शगुफ़्ता कर रख्खा है तुमने..
..क्या समझोगे मेरे दर्द को तुम..
..नाम अपना जो शगुफ़्ता कर रख्खा है तुमने..!
..नाम अपना जो शगुफ़्ता कर रख्खा है तुमने..!
..वक्त था..
..वक्त था जो दर्द का मेरा गुजर गया..
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..
..लम्हा-लम्हा जो बिताया था..
..साथ मैंनें तुम्हारें..
..वक्त था जो फ़रेब का मेरा गुजर गया..
..गम में खुद को भिंगोयें खडा था मैं..
..रास्तें पे अकेले तन्हा पडा था मैं..
..सितम जो मुहब्बत में थे मेरे..
..होंठों पे आके ठहरें थे मेरे..
..सब मेरे हिस्सें से थे जुडे..
..जो कुछ थे बचे वो मेरे खिस्सें से थे जुडे..
..वक्त था जो दर्द का मेरा गुजर गया..
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..
..तुम लफ़्ज़ सँभालते रह गए..
..वक्त था जो मेरे दर्द सँभालते रह गए..
..एक कारवां गुजर गया..
..और तुम दिल सँभालते रह गए..
..हद कर दी तुमने मुहब्बत में..
..कोई मरता रहा..
..और तुम ज़िन्दगी सँभालते रह गए..
..वक्त था जो दर्द का मेरा गुजर गया..
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..!
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..
..लम्हा-लम्हा जो बिताया था..
..साथ मैंनें तुम्हारें..
..वक्त था जो फ़रेब का मेरा गुजर गया..
..गम में खुद को भिंगोयें खडा था मैं..
..रास्तें पे अकेले तन्हा पडा था मैं..
..सितम जो मुहब्बत में थे मेरे..
..होंठों पे आके ठहरें थे मेरे..
..सब मेरे हिस्सें से थे जुडे..
..जो कुछ थे बचे वो मेरे खिस्सें से थे जुडे..
..वक्त था जो दर्द का मेरा गुजर गया..
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..
..तुम लफ़्ज़ सँभालते रह गए..
..वक्त था जो मेरे दर्द सँभालते रह गए..
..एक कारवां गुजर गया..
..और तुम दिल सँभालते रह गए..
..हद कर दी तुमने मुहब्बत में..
..कोई मरता रहा..
..और तुम ज़िन्दगी सँभालते रह गए..
..वक्त था जो दर्द का मेरा गुजर गया..
..वक्त था जो सर्द का मेरा गुजर गया..!
..हाल येँ..
..सयानेँ रिश्तेँ सयानेँ तर्क..
..मासूम बंदा कमजोर नब्ज..
..हाल येँ..
..गाल एक तमाचेँ हजार..!
..मासूम बंदा कमजोर नब्ज..
..हाल येँ..
..गाल एक तमाचेँ हजार..!
Tuesday, 11 March 2014
..फिर से वही बात कर आया..
..फिर से वही बात कर आया..
..रात को फिर ख़ाख कर आया..
..हुनर को स्याहीं से लिख आया..
..प्यार को मैं अपने..
..सरे-आम बेच आया..!
..रात को फिर ख़ाख कर आया..
..हुनर को स्याहीं से लिख आया..
..प्यार को मैं अपने..
..सरे-आम बेच आया..!
..इश्क में फिर एक नाम आया..
..एक और ये नाम आया..
..इश्क में मुझे फिर एक नया काम आया..
..दूर से फिर वही चाँदनी नज़र आई..
..रात में फिर वही नाराज़गी नज़र आई..
..मुहब्बत में एक चेहरा नज़र आया..
..बातों में मेरे फिर एक गज़ल नज़र आया..
..इश्क में फिर एक बदनाम चेहरा जुडता नज़र आया..
..ख्वाबों के परिन्दें फिर आसमां पे नज़र आया..
..बातों में मेरी एक दर्द नज़र आया..
..रातों में फिर गमों भरा चेहरा नज़र आया..
..आशिकों के बातों से दूर..
..राह चलते एक गरीब नज़र आया..
..ज़मानें की भीड में एक बच्चा भूखे नज़र आया..
..आँखें बंद कर चलते राहगीर नज़र आया..
..उम्मीद भरा एक चेहरा उदासी से नज़र आया..
..इश्क में फिर एक नाम आया..
..रूह से मेरे जुडते मेरा खुदा नज़र आया..!
..इश्क में मुझे फिर एक नया काम आया..
..दूर से फिर वही चाँदनी नज़र आई..
..रात में फिर वही नाराज़गी नज़र आई..
..मुहब्बत में एक चेहरा नज़र आया..
..बातों में मेरे फिर एक गज़ल नज़र आया..
..इश्क में फिर एक बदनाम चेहरा जुडता नज़र आया..
..ख्वाबों के परिन्दें फिर आसमां पे नज़र आया..
..बातों में मेरी एक दर्द नज़र आया..
..रातों में फिर गमों भरा चेहरा नज़र आया..
..आशिकों के बातों से दूर..
..राह चलते एक गरीब नज़र आया..
..ज़मानें की भीड में एक बच्चा भूखे नज़र आया..
..आँखें बंद कर चलते राहगीर नज़र आया..
..उम्मीद भरा एक चेहरा उदासी से नज़र आया..
..इश्क में फिर एक नाम आया..
..रूह से मेरे जुडते मेरा खुदा नज़र आया..!
..तो फिर ये आशिकी किस बात..!
..मेरे हालातों पे गर तू ना हँसे..
..तो फिर ये दर्द किस बात..
..मेरे गज़ल में गर तू ना दिखे..
..तो फिर ये मुहब्बत किस बात..
..ज़मानें के दर्द में तू दिखता हैं मुझे..
..गर हर-पल तुझमें खोया ना रहूँ..
..तो फिर ये आशिकी किस बात..!
..तो फिर ये दर्द किस बात..
..मेरे गज़ल में गर तू ना दिखे..
..तो फिर ये मुहब्बत किस बात..
..ज़मानें के दर्द में तू दिखता हैं मुझे..
..गर हर-पल तुझमें खोया ना रहूँ..
..तो फिर ये आशिकी किस बात..!
Sunday, 9 March 2014
..हर लफ़्ज़ है शातिर..
..हर लफ़्ज़ है शातिर हर ज़ुबां है फरेबी..
..रात को यूं ही बदनाम कर रहे..
..अँधेंरों के खेले शातिर..
..कर रहे है हक की बात..
..रात को देख सबेरा की बात..
..गर अँधेरां ना हो तो ये अपराध ना हो..
..कोई रेप ना हो कोई भ्रष्टाचार ना हो..
..कर रहे है ऐसी सारी बकवास की बात..
..दिल को छुपा कहीं रिश्तों से कर रहे है प्यार..
..क्या है इनकी ज़ुबां की बात..
..हित से ज़्यादा कर रहे है अपनी बात..
..कोई ये मुशायरा नहीं जो इरशाद हो..
..शातिर है गर लफ़्ज़ मेरी तो कोई नयीं बात हो..
..रात में होती ज़ुर्म कम हो अपराध पे हाथ मेरी..
..बातों में गर दम हो तो रातों में खुशनुमां रग हो..
..यहीं है आरज़ू मेरी..
..जुबां पे एक रंग हो जो इश्क के रंग हो..
..जग हित में तुम्हारा साथ हो..
..और शातिर बस तुम्हारा ही नाम हो..!
..रात को यूं ही बदनाम कर रहे..
..अँधेंरों के खेले शातिर..
..कर रहे है हक की बात..
..रात को देख सबेरा की बात..
..गर अँधेरां ना हो तो ये अपराध ना हो..
..कोई रेप ना हो कोई भ्रष्टाचार ना हो..
..कर रहे है ऐसी सारी बकवास की बात..
..दिल को छुपा कहीं रिश्तों से कर रहे है प्यार..
..क्या है इनकी ज़ुबां की बात..
..हित से ज़्यादा कर रहे है अपनी बात..
..कोई ये मुशायरा नहीं जो इरशाद हो..
..शातिर है गर लफ़्ज़ मेरी तो कोई नयीं बात हो..
..रात में होती ज़ुर्म कम हो अपराध पे हाथ मेरी..
..बातों में गर दम हो तो रातों में खुशनुमां रग हो..
..यहीं है आरज़ू मेरी..
..जुबां पे एक रंग हो जो इश्क के रंग हो..
..जग हित में तुम्हारा साथ हो..
..और शातिर बस तुम्हारा ही नाम हो..!
..ख़ामोश ही रहने दो इन्हें तुम..
..इक लफ़्ज़ है मेरे इन्हें ख़ामोश ही रहने दो..
..ज़िक्र तेरा कर जाऐंगें तो हाथ से ये मेरे जाऐंगें..
..दिल को तेरे ये मेरे आरमां सुनाऐंगें..
..और दिल से मेरे निकल जाऐंगें..
..ख़ामोश ही रहने दो इन्हें तुम..
..दिल में ही रहने दो इन्हें तुम..
..लफ़्ज़ गर बाहर आऐंगें तो दिल क्या..
..साँसें भी हमारे रुह से अलग हो जाऐंगें..
..इक लफ़्ज़ है मेरे इन्हें ख़ामोश ही रहने दो..
..ज़िक्र तेरा कर जाऐंगें तो हाथ से ये मेरे जाऐंगें..!
..ज़िक्र तेरा कर जाऐंगें तो हाथ से ये मेरे जाऐंगें..
..दिल को तेरे ये मेरे आरमां सुनाऐंगें..
..और दिल से मेरे निकल जाऐंगें..
..ख़ामोश ही रहने दो इन्हें तुम..
..दिल में ही रहने दो इन्हें तुम..
..लफ़्ज़ गर बाहर आऐंगें तो दिल क्या..
..साँसें भी हमारे रुह से अलग हो जाऐंगें..
..इक लफ़्ज़ है मेरे इन्हें ख़ामोश ही रहने दो..
..ज़िक्र तेरा कर जाऐंगें तो हाथ से ये मेरे जाऐंगें..!
Saturday, 8 March 2014
..नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..
..नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..
..पुरुष-प्रधान इस प्रदेश में..
..क्या ये बस जरूरत का नाम हैं..
..चूल्हें की आग में बिछावन की रात में..
..सयानों की बात में..
..क्या बस ये समाज़ की बकवास में है..
..सजने-सजानें में दर्द को छुपानें में..
..लोरी सुनानें में गमों को सीने से लगाने में..
..क्या बस जरूरत में ही याद आते है..
..मक्सद के खातिर ही बनायें जाते है..
..रिश्तों में बस सजाएँ जाते है..
..नारी को अपनाने के ख़िस्सें बस सुनाएँ जाते है..
..कैसी है चलन ये..
..समाज़ की भूख में तपाएँ जाते हैं..
..दर्द के आँसू में रुलाएँ जाते हैं..
..ज़माने के आग में झोंक के जलाएँ जाते हैं..
..सम्मान में बस दिखाएँ जाते हैं..
..पता ना जमाना अब कितना पीछें चला जा रहा हैं..
..नारी को समाज़ से हटाया जा रहा हैं..
..नारी हैं समाज़ की नींव..
..इन्हें किसी मक्सद से नहीं..
..अपने दिल से जोडों..
..मुहब्बत में एक लफ़्ज़ और नया जोडों..
..नारी-सम्मान को एक नई मक्सद से जोडों..!
..पुरुष-प्रधान इस प्रदेश में..
..क्या ये बस जरूरत का नाम हैं..
..चूल्हें की आग में बिछावन की रात में..
..सयानों की बात में..
..क्या बस ये समाज़ की बकवास में है..
..सजने-सजानें में दर्द को छुपानें में..
..लोरी सुनानें में गमों को सीने से लगाने में..
..क्या बस जरूरत में ही याद आते है..
..मक्सद के खातिर ही बनायें जाते है..
..रिश्तों में बस सजाएँ जाते है..
..नारी को अपनाने के ख़िस्सें बस सुनाएँ जाते है..
..कैसी है चलन ये..
..समाज़ की भूख में तपाएँ जाते हैं..
..दर्द के आँसू में रुलाएँ जाते हैं..
..ज़माने के आग में झोंक के जलाएँ जाते हैं..
..सम्मान में बस दिखाएँ जाते हैं..
..पता ना जमाना अब कितना पीछें चला जा रहा हैं..
..नारी को समाज़ से हटाया जा रहा हैं..
..नारी हैं समाज़ की नींव..
..इन्हें किसी मक्सद से नहीं..
..अपने दिल से जोडों..
..मुहब्बत में एक लफ़्ज़ और नया जोडों..
..नारी-सम्मान को एक नई मक्सद से जोडों..!
Thursday, 6 March 2014
..सयानें है रिश्तें..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..समुन्दर सी बात हैं मेरी..
..ये रात को ऐसे ही रहने दो..
..मुहब्बत में है शिकस्त मेरी..
..मेरी जाँ को बस ऐसे ही परेशां रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..बागों की बातों को रातों की सौगातों को..
..यूं ही राज़ ही रहने दो..
..दिल में मेरी अपनी वहीं पुरानी तस्वीर बसी रहने दो..
..ये ज़ुल्म की रात मेरे हर्श की बात..
..लफ़्ज़ों से अपने दूर ही रहने दो..
..मुहब्बत के साथी मेरे..
..ज़रा मुझे मेरी बातों में बने रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..बारिशों बीच मुझे तन्हा भींगे रहने दो..
..हवाओं को मेरी ज़ुल्फ़ों से लगे रहने दो..
..दिल के मेरे ज़ज़्बातों को..
..सीने से ही लगे रहने दो..
..फ़रेब की मुहब्बत से मुझे दूर ही रहने दो..
..मेरी बातों को मेरी दिल से लगी रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..रही कुछ ज़िन्दगी को मेरी..
..थोडा सुकून से बने रहने दो..
..रिश्तों में मेरे थोडा वज़ूद बने रहने दो..
..मुहब्बत में मेरे किए ज़ुर्म को..
..मेरे नाम से ही लगे रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..!
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..समुन्दर सी बात हैं मेरी..
..ये रात को ऐसे ही रहने दो..
..मुहब्बत में है शिकस्त मेरी..
..मेरी जाँ को बस ऐसे ही परेशां रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..बागों की बातों को रातों की सौगातों को..
..यूं ही राज़ ही रहने दो..
..दिल में मेरी अपनी वहीं पुरानी तस्वीर बसी रहने दो..
..ये ज़ुल्म की रात मेरे हर्श की बात..
..लफ़्ज़ों से अपने दूर ही रहने दो..
..मुहब्बत के साथी मेरे..
..ज़रा मुझे मेरी बातों में बने रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..बारिशों बीच मुझे तन्हा भींगे रहने दो..
..हवाओं को मेरी ज़ुल्फ़ों से लगे रहने दो..
..दिल के मेरे ज़ज़्बातों को..
..सीने से ही लगे रहने दो..
..फ़रेब की मुहब्बत से मुझे दूर ही रहने दो..
..मेरी बातों को मेरी दिल से लगी रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..
..रही कुछ ज़िन्दगी को मेरी..
..थोडा सुकून से बने रहने दो..
..रिश्तों में मेरे थोडा वज़ूद बने रहने दो..
..मुहब्बत में मेरे किए ज़ुर्म को..
..मेरे नाम से ही लगे रहने दो..
..लफ़्ज़ दर्द के मेरे खामोश ही रहने दो..
..सयानें है रिश्तें दर्द को दिल में ही रहने दो..!
..रक्त बाकी है..
..रक्त बाकी है वक्त बाकी है..
..मेरी लफ़्ज़ों पे एक हर्फ़ बाकी है..
..मिट जाऐंगे कभी..
..शायद लिखे मेरे नामों के पन्नें..
..कभी लेकिन ज़ुबां पे मेरी..
..अभी एक हर्फ़ बाकी है..
..कुछ रक्त बाकी है..
..सीने में एक दिल बाकी है..
..जुदा हो धडकन से तेरी..
..मुहब्बत आँखों में मेरी अभ्भी बाकी है..
..मुश्किल में है जाँ मेरी..
..मगर ज़ुबां पे नाम अभ्भी बाकी है..!
..मेरी लफ़्ज़ों पे एक हर्फ़ बाकी है..
..मिट जाऐंगे कभी..
..शायद लिखे मेरे नामों के पन्नें..
..कभी लेकिन ज़ुबां पे मेरी..
..अभी एक हर्फ़ बाकी है..
..कुछ रक्त बाकी है..
..सीने में एक दिल बाकी है..
..जुदा हो धडकन से तेरी..
..मुहब्बत आँखों में मेरी अभ्भी बाकी है..
..मुश्किल में है जाँ मेरी..
..मगर ज़ुबां पे नाम अभ्भी बाकी है..!
Saturday, 1 March 2014
..सारी कायनात..
..जो मिली थीं मुस्कुराहट मुझे ज़िन्दगी से..
..जो मिली थीं राहत मुझे ज़िन्दगी से..
..रात ए गम की चली..
..और ज़िन्दगी राख में मिल गयीं..
..खाख़ तो होना ही था एक दिन..
..ज़िन्दगी दुश्मनी की बारात से निकल गयीं..
..मुहब्बत जो मेरी..
..बेवफ़ा की दिल से होकर गुजरी..
..सारी कायनात..
..मेरी रात से होकर गुजर गयीं..!
..जो मिली थीं राहत मुझे ज़िन्दगी से..
..रात ए गम की चली..
..और ज़िन्दगी राख में मिल गयीं..
..खाख़ तो होना ही था एक दिन..
..ज़िन्दगी दुश्मनी की बारात से निकल गयीं..
..मुहब्बत जो मेरी..
..बेवफ़ा की दिल से होकर गुजरी..
..सारी कायनात..
..मेरी रात से होकर गुजर गयीं..!
Subscribe to:
Posts (Atom)