Saturday, 8 March 2014

..नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..

..नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..
..पुरुष-प्रधान इस प्रदेश में..
..क्या ये बस जरूरत का नाम हैं..
..चूल्हें की आग में बिछावन की रात में..
..सयानों की बात में..
..क्या बस ये समाज़ की बकवास में है..
..सजने-सजानें में दर्द को छुपानें में..
..लोरी सुनानें में गमों को सीने से लगाने में..
..क्या बस जरूरत में ही याद आते है..
..मक्सद के खातिर ही बनायें जाते है..
..रिश्तों में बस सजाएँ जाते है..
..नारी को अपनाने के ख़िस्सें बस सुनाएँ जाते है..
..कैसी है चलन ये..
..समाज़ की भूख में तपाएँ जाते हैं..
..दर्द के आँसू में रुलाएँ जाते हैं..
..ज़माने के आग में झोंक के जलाएँ जाते हैं..
..सम्मान में बस दिखाएँ जाते हैं..
..पता ना जमाना अब कितना पीछें चला जा रहा हैं..
..नारी को समाज़ से हटाया जा रहा हैं..
..नारी हैं समाज़ की नींव..
..इन्हें किसी मक्सद से नहीं..
..अपने दिल से जोडों..
..मुहब्बत में एक लफ़्ज़ और नया जोडों..
..नारी-सम्मान को एक नई मक्सद से जोडों..!

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