Friday, 28 March 2014

..शर्म आँखों में देख तुझे मेरे भर जाए..

..जानें फ़िर कौन से..
..अंज़ाने राहों पे तु कभी मिल जाए..
..शर्म आँखों में देख तुझे मेरे भर जाए..
..ज़िस मकसद से मैंनें गिराया था..
..तुझे उस मुकाम से..
..फ़िर वहीं मुकाम पे दोनों मिल जाए..
..तो क्या हो जाए..
..ज़रुरत नहीं अब इस ज़ुर्रत की..
..तुमसे फ़िर आशिकी की जाए..
..मुहब्बत की राज़-भरी किताब..
..फ़िर से खोली जाए..
..हो गया सितमगर..
..जो इस आशिकी में होना था..
..जरुरत नहीं सब बात..
..भरी महफ़िल में खोली जाए..!


No comments:

Post a Comment