Monday, 31 March 2014

..राज़नीति या विकास..

..मेरे बच्चों की खुशियाँ..
..मेरे प्रशासन ने तोडे है..
..मुझे कर बेरोज़गार..
..ज़ुर्म का बाज़ीगर मुझे बनाएँ हैं..
..हो गया हैं सब तहस-नहस..
..जो सजाएँ थे मैंनें सपनें सुहानें..
..प्रशासन ने जो मेरे बिगाडें हैं..
..सब आडे खडें हैं मेरे बच्चों के सहारें..
..कितना कुछ बदल गया मेरे समाज़ में..
..बच्चों के हाथ में मेरे तमन्चा..
..ये सियासी दावं-पेंच ने..
..मेरे गाल पे क्या करारा तमाचा मारा हैं..
..वोट मेरा और हुकूमत उनका..
..कहाँ तक ये गँवारा हैं..
..मकसद अब शायद बदलेंगें..
..मेरे बच्चों के आँखें में..
..फ़िर से सपनों सँज़ेगें..
..प्रशासन में परिवर्तन..
..फ़िर से ये छलावा सामनें आया हैं मेरे..
..देखे इस बार होता हैं क्या..
..राज़नीति या विकास..
..ये जो मुद्दा सामने उभर के आया हैं मेरे..!


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