Sunday, 30 March 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..तुम भी उसी समुन्दर से गुजर गयी..
..मेरी तरह तुम भी भंवरों के बीच फ़ँस गयी..
..ख़ामाखाह तडपते रहे हम खुदा की फ़रियाद में..
..और खुदा हमारी सज़दों से मुकर गये..!

[2] ..ये ज़िन्दगी का दस्तूर ही कुछ ऐसा हैं..
..मेरी जाँ..
..तुम तुम और सिर्फ़ तुम..
..मेरी मौत तक जो मुझमें बसी हो..!

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