Saturday, 30 May 2015

दोनों का सफर

दोनों का सफर बस कुछ लम्हों का था। कौन जानता था यूं ही रिश्तें बिखर जाऐंगे, बिन जिसके एक लम्हा भी दुस्वार लगता था उसके बिना ये पहाड सी ज़िन्दगी कैसी गुजरेगी। वो उम्मीदों पे खडा उतरना चाहता था तो उसकी उम्मीदें उससे बेहिसाब ही हुआ करती थीं, वो उसके सपनों को बुनना चाहता था तो वो उसको अपनी ख्वाब मानती थीं, वो उसके साथ जीना चाहता था तो वो उसमें जीना चाहती थीं।

मुहब्बत कुछ हद से ज्यादा ही जब करीब हो जाएं तो कडवाहट, परेशानियाँ या फिर यूं कहें की वो रूसवाईयों का रूप ले लेती हैं। समझना बहोत पेंचिदा सा हो जाता हैं, रिश्तें बहोत नाजुक होतें हैं अगर उन्हें जोर से अपनी तरफ खींचों तो हाथ कट जाती और हल्का छोड दो तो उल्झ जाती हैं इसलिए तो हम रिश्तों को डोर से कहा करतें हैं। दिल बहलाना अगल वाली बात हैं और दिल में बसाना अलग। उन्हें भी शायद इन बातों का तनिक भी होश ना था, हाँ ख्यालें बरहाल उनमें जिंदा रहती थीं मगर ख्यालें तो बस ख्वाब में हुआ करती हैं उनका वास्तविक ज़ीवन से कोई संबंध नही होता।

नितेश वर्मा

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