Wednesday, 13 May 2015

Nitesh Verma Poetry

खुद से समझौता करके बैठ गया
जो कभी तेरे खातिर मरा करता था।

नितेश वर्मा

उसे मुझसे उम्मीद ही कितना था
साथ मेरा और शहर कही और था।

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment