खुद से समझौता करके बैठ गया
जो कभी तेरे खातिर मरा करता था।
नितेश वर्मा
उसे मुझसे उम्मीद ही कितना था
साथ मेरा और शहर कही और था।
नितेश वर्मा
जो कभी तेरे खातिर मरा करता था।
नितेश वर्मा
उसे मुझसे उम्मीद ही कितना था
साथ मेरा और शहर कही और था।
नितेश वर्मा
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