Sunday, 3 May 2015

पारस में अकड कभी कहाँ था

उसनें बस इतना ही कहा था
तुमसे मुहब्बत कभी कहाँ था

मैं इक परिंदा आसमानों का
मुझे वो सुकून कभी कहाँ था

मिट्टी मुझसे लग सोना हुआ
पारस में अकड कभी कहाँ था

वो यूं मुझे बदनाम करता रहा
ज़मानें में ये दम कभी कहाँ था

नितेश वर्मा

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