एक वक्त होता हैं जब ये दिल आशिकी में होता हैं। गर्मी भी सुहावना सा लगता हैं.. ठंड में बहती पूरवाई भी दिल को आंन्दित कर जाती हैं। उसका ख्याल भी बस एक अजीब सा सुकूं दे जाती हैं। दिल को एक नयी आसमां मिल जाती हैं.. दिल एक हठ पे हो जाता हैं उडनें को जी चाहता हैं.. जैसे कोई पंख-सा लग गया हो और देखनें वालें कहतें हैं आवारा हैं।
दिल सब समझता हैं लेकिन अब उनको क्या समझाना.. जो हो रहा हैं दिल का हाल सबको अब क्यूं बताना। मुझे उसका हर-पल इंतजार रहता हैं.. इक ख्याल रहता हैं.. शायद उसे भी कुछ ऐसा ही होता हैं.. बताना शायद उसकें हक में नहीं.. लेकिन उसका यूं ही गुम रहना मुझे और परेशान करता हैं।
लोग कहतें हैं कहाँ लगा पडा हैं.. जब होना होता तो तेरी कब की हो जाती.. वो कहतें हैं ना कभी-कभी बस एक पल ही काफी होता हैं किसी को जान लेनें को और कभी इक उम्र गुजर जाती हैं। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हैं.. समझ नहीं आता किस दौर से गुजर रहा हूँ.. शायद आज भी आशिकी दरों-दीवारों से बंधित हैं.. निकलना चाहती हैं.. इक आवाज लगाना चाहती हैं.. लेकिन शायद अब कोई गुंजाईश नहीं.. इक हद पे आके जैसे कहानियाँ रूक जाती हैं.. पात्र बिगड जातें हैं.. वैसे आशिकी भी ठहर जाती हैं।
कौन सा उम्मीद नजर आएं मुझको
हर-पल तू ही तू नजर आएं मुझको
नितेश वर्मा
दिल सब समझता हैं लेकिन अब उनको क्या समझाना.. जो हो रहा हैं दिल का हाल सबको अब क्यूं बताना। मुझे उसका हर-पल इंतजार रहता हैं.. इक ख्याल रहता हैं.. शायद उसे भी कुछ ऐसा ही होता हैं.. बताना शायद उसकें हक में नहीं.. लेकिन उसका यूं ही गुम रहना मुझे और परेशान करता हैं।
लोग कहतें हैं कहाँ लगा पडा हैं.. जब होना होता तो तेरी कब की हो जाती.. वो कहतें हैं ना कभी-कभी बस एक पल ही काफी होता हैं किसी को जान लेनें को और कभी इक उम्र गुजर जाती हैं। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हैं.. समझ नहीं आता किस दौर से गुजर रहा हूँ.. शायद आज भी आशिकी दरों-दीवारों से बंधित हैं.. निकलना चाहती हैं.. इक आवाज लगाना चाहती हैं.. लेकिन शायद अब कोई गुंजाईश नहीं.. इक हद पे आके जैसे कहानियाँ रूक जाती हैं.. पात्र बिगड जातें हैं.. वैसे आशिकी भी ठहर जाती हैं।
कौन सा उम्मीद नजर आएं मुझको
हर-पल तू ही तू नजर आएं मुझको
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