Tuesday, 19 May 2015

अपनी जुल्फों की परेशानियों को पढा करते हैं

अपनी जुल्फों की परेशानियों को पढा करते हैं
वो अभ्भी कितनी नादानियों को करा फिरते हैं

दिल संभाल के चुपचाप रख दिया हैं पास उनकें
दूर होकर हम सब बदनामियों को सहा करतें हैं

उनके लब पे आकर यूं ज़िक्र मेरा ठहर जाता हैं
वो तो यूं ही इन बदमाशियों को करा फिरते हैं

बदल गयी हैं अब तो सारी किताबें आशिकी की
था कहीं लिखा पन्नें कहानियों को पढा करते हैं

हसीन चेहरा उनसा अब कोई भला क्यूं हो वर्मा
हम तो आँखों की उन बेताबियों को पढा करतें हैं

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment