अपनी जुल्फों की परेशानियों को पढा करते हैं
वो अभ्भी कितनी नादानियों को करा फिरते हैं
दिल संभाल के चुपचाप रख दिया हैं पास उनकें
दूर होकर हम सब बदनामियों को सहा करतें हैं
उनके लब पे आकर यूं ज़िक्र मेरा ठहर जाता हैं
वो तो यूं ही इन बदमाशियों को करा फिरते हैं
बदल गयी हैं अब तो सारी किताबें आशिकी की
था कहीं लिखा पन्नें कहानियों को पढा करते हैं
हसीन चेहरा उनसा अब कोई भला क्यूं हो वर्मा
हम तो आँखों की उन बेताबियों को पढा करतें हैं
नितेश वर्मा
वो अभ्भी कितनी नादानियों को करा फिरते हैं
दिल संभाल के चुपचाप रख दिया हैं पास उनकें
दूर होकर हम सब बदनामियों को सहा करतें हैं
उनके लब पे आकर यूं ज़िक्र मेरा ठहर जाता हैं
वो तो यूं ही इन बदमाशियों को करा फिरते हैं
बदल गयी हैं अब तो सारी किताबें आशिकी की
था कहीं लिखा पन्नें कहानियों को पढा करते हैं
हसीन चेहरा उनसा अब कोई भला क्यूं हो वर्मा
हम तो आँखों की उन बेताबियों को पढा करतें हैं
नितेश वर्मा
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