तमाम अशआर को पूरा करतें हो तुम
फिर क्यूं मुझे यूं अधूरा करतें हो तुम
बिखरी सी ही मैं तुम्हें लगती थीं ना
अब क्यूं जुल्फों को जुडा करते हो तुम
ज़िन्दगी को कितना अलग कर दिया
मौत मुझे क्यूं यूं खुरदुरा करतें हो तुम
लिखा मैनें जो औकात का हिसाब था
समेटनेंवाले को क्यूं बुरा करतें हो तुम
आज भी लौट आनें को वो तैयार रहा हैं
जिसके लिये खुदको कडा करते हो तुम
नितेश वर्मा
फिर क्यूं मुझे यूं अधूरा करतें हो तुम
बिखरी सी ही मैं तुम्हें लगती थीं ना
अब क्यूं जुल्फों को जुडा करते हो तुम
ज़िन्दगी को कितना अलग कर दिया
मौत मुझे क्यूं यूं खुरदुरा करतें हो तुम
लिखा मैनें जो औकात का हिसाब था
समेटनेंवाले को क्यूं बुरा करतें हो तुम
आज भी लौट आनें को वो तैयार रहा हैं
जिसके लिये खुदको कडा करते हो तुम
नितेश वर्मा
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