Friday, 29 May 2015

मौत मुझे क्यूं यूं खुरदुरा करतें हो तुम

तमाम अशआर को पूरा करतें हो तुम
फिर क्यूं मुझे यूं अधूरा करतें हो तुम

बिखरी सी ही मैं तुम्हें लगती थीं ना
अब क्यूं जुल्फों को जुडा करते हो तुम

ज़िन्दगी को कितना अलग कर दिया
मौत मुझे क्यूं यूं खुरदुरा करतें हो तुम

लिखा मैनें जो औकात का हिसाब था
समेटनेंवाले को क्यूं बुरा करतें हो तुम

आज भी लौट आनें को वो तैयार रहा हैं
जिसके लिये खुदको कडा करते हो तुम

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment