उसका इंतजार क्यूं हर वक्त इस दिल को हैं
वो मेरा नहीं फिर भी परेशां ये दिल उसको हैं
नितेश वर्मा
हर वक्त को पीछे छोड़ आये हैं हम
उनसे वो हर रिश्ता तोड़ आये हैं हम
अब शायद जा के कुछ सुकून मिले
जिंदा था जो जिस्म जला आये हैं हम।
नितेश वर्मा और सुकून
इस तकलीफ से गुजर रही हैं जिन्दगी
जाने क्यूं रोज खर्च हो रही हैं जिन्दगी।
उसने तो चाहा था खुद में समेटना मुझे
मैं लड़ता रहा कहके ये मेरी हैं जिन्दगी।
नितेश वर्मा और जिंदगी
वो मेरा नहीं फिर भी परेशां ये दिल उसको हैं
नितेश वर्मा
हर वक्त को पीछे छोड़ आये हैं हम
उनसे वो हर रिश्ता तोड़ आये हैं हम
अब शायद जा के कुछ सुकून मिले
जिंदा था जो जिस्म जला आये हैं हम।
नितेश वर्मा और सुकून
इस तकलीफ से गुजर रही हैं जिन्दगी
जाने क्यूं रोज खर्च हो रही हैं जिन्दगी।
उसने तो चाहा था खुद में समेटना मुझे
मैं लड़ता रहा कहके ये मेरी हैं जिन्दगी।
नितेश वर्मा और जिंदगी
No comments:
Post a Comment