Friday, 15 May 2015

हादसों के हवालें से गुजर रही हैं ज़िन्दगी

हादसों के हवालें से गुजर रही हैं ज़िन्दगी
तुमनें ये देखा नहीं सुधर रही हैं ज़िन्दगी

तकलीफ क्या बस उसको ही हैं इश्क में
हमारी तरफ भी बेसबर रही हैं ज़िन्दगी

परिंदे की पर की ख्वाहिश अब हमें भी हैं
खामियों से ही ये बेकबर रही हैं ज़िन्दगी

हालात बता के अब वो ठग लेता हैं मुझे
ये इतनी परेशां क्यूं कर रही हैं ज़िन्दगी

कोई नहीं सुनेगा इन कहानियों को वर्मा
अफवाहों से ही दर-बदर रही हैं ज़िन्दगी

नितेश वर्मा








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