मुनासिब नहीं है इश्क़ साहब
दिल की बीमारी इश्क़ साहब।
लगा जो ये रोग किसी रोज़ रे
मुलाजिम हो जाये जाँ साहब।
गम और भी है सुनाने को यूं
मगर है यहीं जानलेवा साहब।
तस्वीर सायों की गिरफ्त में है
परेशां है देख बाज़ार साहब।
धोखेबाजों से मिली पाठ वर्मा
जिन्दगी नहीं है इश्क़ साहब।
नितेश वर्मा
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