Saturday, 26 December 2015

एक ख्वाहिश मुझमें खामोश रहती है

एक ख्वाहिश मुझमें खामोश रहती है
देखकर तुझे ना यूं कोई होश रहती है।

कुछ कहना चाहता था बरसों से तुमसे
मगर हाल हर वक़्त मदहोश रहती है।

हिसाबों किताब का जिक्र होगा तुमसे
फिलहाल तो जिगर ये बेहोश रहती है।

तुम जिस्म के हर सिहरन में रहती हो
जो उठे कोई बात तुम निर्दोष रहती है।

नितेश वर्मा और रहती है।

No comments:

Post a Comment