Saturday, 26 December 2015

एक शाम गुजांइश की

एक शाम गुजांइश की
जिसमें होंगे
सम्मिलित कुछ किस्से
कुछ अधूरे.. कुछ पूरे
कोई ख्वाब चलकर आयेगी
कोई ग़ज़ल सुनायेगी
मिट जायेंगे विवाद सारे
परस्पर जब मिल जायेंगे
लबों से लफ्जों लब हमारे
गम-ओ-शिकवों से दूर
एक शीतलता से मदहोश
कोई होश जब ना ठहरेगी
सामने आँखों के तुम होगी
उस शाम के कोहरे में
जहाँ धुंधों में तुम होगी
बात होगी फरमाइश की
होगी जब
एक शाम गुजांइश की।

नितेश वर्मा और एक शाम।

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