दो आँखें हर वक़्त पीछे लगीं होती
रोने की भी इजाज़त ना मिलती
और
ना ही कुछ छिपा लेने की
ग़म रिंसता रहता मूसलसल
सदियों की दुआएं.. ये खैरियत
मेरे मौला से की हर शिकायत
रह जाती यहीं पास मेरे
जैसे उसकी गुनाहें
पानी पर लिखी तहरीर हो
और
पढनेंवाला भी हैंरा हो बिलकुल
ये कहनेवाले की तरह
कोई परेशां हैं किसी हैवान के आगे।
नितेश वर्मा
रोने की भी इजाज़त ना मिलती
और
ना ही कुछ छिपा लेने की
ग़म रिंसता रहता मूसलसल
सदियों की दुआएं.. ये खैरियत
मेरे मौला से की हर शिकायत
रह जाती यहीं पास मेरे
जैसे उसकी गुनाहें
पानी पर लिखी तहरीर हो
और
पढनेंवाला भी हैंरा हो बिलकुल
ये कहनेवाले की तरह
कोई परेशां हैं किसी हैवान के आगे।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment