Saturday, 19 December 2015

हर बार वहीं बात

हर बार वहीं बात
वो चली गयी
करके
मुझे बीच मझदार
फिर याद आएगी
जाने कब तक मुझे
एक शिकस्त खाये
खड़े हैं
हम भी बीच बाजार
परेशां मेरे इश्क़ से
ज़माना ये सारा है
मेरे ख्याल से
मेरे ख्याल में
पागल ये मुल्क सारा है
फिर भी जीं रहा हूँ
बगैर बेफिक्र उसके
बोल रही ये हर जुबाँ है
और सुनके ये
रों रहा है मेरा प्यार
अब रहने दो
सुनाऊंगा फिर किसी रोज़
जिन्दगी का ये विस्तार
आज़ खुद से हूँ.. खुद में हूँ
मैं होके बहोत शर्मसार।

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment