तमाम उलझनों के बाद फिर तुम
निगाहें हैं देखकर परेशान
के क्यूं लौट के आयी फिर तुम
तुम्हें जिस्म में कैद करने को
निकले जो अपने कूचे से
हवाओं में नज़र आयी फिर तुम
मुहब्बत ही है दवा, है ये दर्द भी
देखो
सवालों में सिमट आयी फिर तुम
तमाम उलझनों के बाद फिर तुम
नितेश वर्मा और फिर तुम।
निगाहें हैं देखकर परेशान
के क्यूं लौट के आयी फिर तुम
तुम्हें जिस्म में कैद करने को
निकले जो अपने कूचे से
हवाओं में नज़र आयी फिर तुम
मुहब्बत ही है दवा, है ये दर्द भी
देखो
सवालों में सिमट आयी फिर तुम
तमाम उलझनों के बाद फिर तुम
नितेश वर्मा और फिर तुम।
No comments:
Post a Comment