अब कोई कविता नहीं लिखी जायेगी
और ना ही दोस्ती का हाथ बढेगा
ना ही पीठ पर छुरें खाऐंगे
और ना ही तिलमिला के चुप हो जायेंगे
अब इंतहां हो गयी है
सिलसिला ये बंद करना होगा
तुम ज़ख़्म करो, हम दवा करे
तुम आँसू दो, हम उन्हें फुसलाते फिरें
तुम बेखौफ मारो
और हम बेवजह सहते फिरें
माँ, बच्चे, बाप, बेटी, बहू्ँ रोते रहे
भाई कांधे पर कांधे देते रहे
नहीं अब नहीं होगा ऐसा
खामोशी टूट जायेगी इस बार
विद्रोह फूट जायेगा इस बार
तुम सोच लो इस बार
अगली बार कुछ और हो जायेगा
ये दर्द, मरहम किसके हिस्से जायेंगे
जवाबदेह बस इसके तुम होगे
बस तुम.. बस तुम.. बस तुम।
नितेश वर्मा
और ना ही दोस्ती का हाथ बढेगा
ना ही पीठ पर छुरें खाऐंगे
और ना ही तिलमिला के चुप हो जायेंगे
अब इंतहां हो गयी है
सिलसिला ये बंद करना होगा
तुम ज़ख़्म करो, हम दवा करे
तुम आँसू दो, हम उन्हें फुसलाते फिरें
तुम बेखौफ मारो
और हम बेवजह सहते फिरें
माँ, बच्चे, बाप, बेटी, बहू्ँ रोते रहे
भाई कांधे पर कांधे देते रहे
नहीं अब नहीं होगा ऐसा
खामोशी टूट जायेगी इस बार
विद्रोह फूट जायेगा इस बार
तुम सोच लो इस बार
अगली बार कुछ और हो जायेगा
ये दर्द, मरहम किसके हिस्से जायेंगे
जवाबदेह बस इसके तुम होगे
बस तुम.. बस तुम.. बस तुम।
नितेश वर्मा
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