जभ्भी ख़ामोशी तुममें बढ़ जायेगी
एक सवाल ज़ेहन पर चढ़ जायेगी।
तुम हरकतें चाहें खुद लाख करो
बातें फिर भी कहीं बिगड़ जायेगी।
मुख़्तलिफ़ है अरमानों से जहां भी
मगर हर जुबाँ इश्क़ पढ़ जायेगी।
दुआ कुबूल हो भी जाये तो क्या है
बद्दुआ ये सब ख़ाख कर जायेगी।
न रो रोने से आँखें भी भर गई वर्मा
इस अग्न से सर्दियां भी तड़प जायेगी।
नितेश वर्मा
एक सवाल ज़ेहन पर चढ़ जायेगी।
तुम हरकतें चाहें खुद लाख करो
बातें फिर भी कहीं बिगड़ जायेगी।
मुख़्तलिफ़ है अरमानों से जहां भी
मगर हर जुबाँ इश्क़ पढ़ जायेगी।
दुआ कुबूल हो भी जाये तो क्या है
बद्दुआ ये सब ख़ाख कर जायेगी।
न रो रोने से आँखें भी भर गई वर्मा
इस अग्न से सर्दियां भी तड़प जायेगी।
नितेश वर्मा
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