Saturday, 30 January 2016

सूरज की तिलमिलाती किरणें

सूरज की तिलमिलाती किरणें
आँखों को बेचैन कर देती
जब भी तुम्हारी जुल्फें
हवाओं के संग लहराती
तुम्हारे खामोश चेहरे को देख
बेबसी से आँखें झुक जाती
तुम सूरज की उल्टी तरफ होती
रौशनी सारी मुझपर होती
तकलीफ़ भी मुझको ही होती
मगर जब भी तुम आ जाती
मेरे चेहरे के सामने बेख्याली हो
सूरज कहीं डूब जाता तुममें
और ये जिस्म ढल जाता तुममें
याद तो नहीं मगर भूला भी नहीं
धुंधली सी एक तस्वीर तुम्हारी
अभी भी इन आँखों में है।

नितेश वर्मा

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