हम उतने ही पुराने
तुम उतने ही मुनासिब
इश्क़ के बाज़ार में
लिये गुलज़ार बनके
गालिब जुबाँ है हाजिर
तुम एक राही सफ़र के
पगड़ंड़ी हम हुए तुम्हारे
एक छांव की तलाश में
जलते रहे कई आस में
प्यासे समुंदर, किनारे मंजिल
भटक रहे है अब भी
दो जानिब दुश्मन हमारे
सुकून ना ठहरें जिस्म पर
आग लगें है
कमबख्त! शहर में सारे।
नितेश वर्मा
तुम उतने ही मुनासिब
इश्क़ के बाज़ार में
लिये गुलज़ार बनके
गालिब जुबाँ है हाजिर
तुम एक राही सफ़र के
पगड़ंड़ी हम हुए तुम्हारे
एक छांव की तलाश में
जलते रहे कई आस में
प्यासे समुंदर, किनारे मंजिल
भटक रहे है अब भी
दो जानिब दुश्मन हमारे
सुकून ना ठहरें जिस्म पर
आग लगें है
कमबख्त! शहर में सारे।
नितेश वर्मा
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