Saturday, 30 January 2016

अब जो आँखों में शर्मिंदगी है तो हैरान क्यूं हो

अब जो आँखों में शर्मिंदगी है तो हैरान क्यूं हो
मुझे यूं होता देख परेशान ख़ुद परेशान क्यूं हो।

बहोत अरसे बाद मिले हो जैसे सुकून के लम्हे
अब आके गले भी लग जाओ यूं बेजान क्यूं हो।

परिंदे ख्यालों में आते है बार-बार तकरार को
समां है सारा उदास तुम मुझमें उड़ान क्यूं हो।

बेचारगी हवा उड़ा के ले गयीं मुझसे सारी वो
मैं पुराना सा घर तुम आखिरी मकान क्यूं हो।

जो उतर जायें तुम्हारी ये ख़ुमारी मुहब्बत की
होगी आजमाइश फिर अब बंधे जुबान क्यूं हो।

जिद आखिर तक मुझमें भी चलती रही वर्मा
सौ शख़्स होकर एक अदद पहचान क्यूं हो।

नितेश वर्मा ओर और क्यूं हो।

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