एक समुंदर है इश्क़
परिंदे प्यासे है सारे
फेर तमाम नज़रों का है
कैसी बीमारी है इश्क़
हाल हवाओं का भी
बेचैन रहता है बेवजह
हर शक्लों में वो दिखे
बनके वो कोई वजह
ना ही ठहरता है कभी
पत्थर है वो एक झील का
दिल के अंदर दिल है
फिर भी कभी बदतमीज
कुछ सुनता नहीं है इश्क़।
नितेश वर्मा और इश्क़।
परिंदे प्यासे है सारे
फेर तमाम नज़रों का है
कैसी बीमारी है इश्क़
हाल हवाओं का भी
बेचैन रहता है बेवजह
हर शक्लों में वो दिखे
बनके वो कोई वजह
ना ही ठहरता है कभी
पत्थर है वो एक झील का
दिल के अंदर दिल है
फिर भी कभी बदतमीज
कुछ सुनता नहीं है इश्क़।
नितेश वर्मा और इश्क़।
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