मुझको भी जो यकीन था एक रोज़ आके बिक गया
सौ खंजर उतरे सीने में फिर आसमां भी दिख गया।
पड़े थे किसी गली की आखिरी मोड़ पर यूंही वर्मा
चंद सिक्के देखे जैसे मुझे भी देके कोई भीख गया।
नितेश वर्मा
सौ खंजर उतरे सीने में फिर आसमां भी दिख गया।
पड़े थे किसी गली की आखिरी मोड़ पर यूंही वर्मा
चंद सिक्के देखे जैसे मुझे भी देके कोई भीख गया।
नितेश वर्मा
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