ख्वाब सारे उड़ कर धुँआ हो जाये
कुबूल होकर मुझमें दुआ हो जाये।
मैं नहीं मानता हंसी उन लफ्जों को
वक़्त बदलते जो बद्दुआ हो जाये।
सिर्फ ये चराग़ मेरे घर जलता रहा
आँधियों को शर्मं से सजा हो जाये।
हर वक़्त जो हुआ करता है वर्मा
ये खेल प्यार अब जुआ हो जाये।
नितेश वर्मा
कुबूल होकर मुझमें दुआ हो जाये।
मैं नहीं मानता हंसी उन लफ्जों को
वक़्त बदलते जो बद्दुआ हो जाये।
सिर्फ ये चराग़ मेरे घर जलता रहा
आँधियों को शर्मं से सजा हो जाये।
हर वक़्त जो हुआ करता है वर्मा
ये खेल प्यार अब जुआ हो जाये।
नितेश वर्मा
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