कविता जो बहोत पुरानी हो गयीं हैं
एक दफा फिर जुबाँ पे उतर गयीं हैं
गांव की पगडंडियों पर
नहर से होकर खेत तक
आम की क्यारियों से
अचानक जो गुजर गयीं हैं
उस पुराने से खंडहर स्कूल की
मैथस की वो मिस आज भी याद हैं
गर्लस स्कूल की सारी लड़कियां
ज़ेहन पे आकर फिर ठहर गयीं हैं
बात-बहस तो सारी बस
अब ख्यालों की ही रह गयीं हैं
चूल्हे की गर्म सुलगती आंच भी
नाजाने कबकी बुझ गयीं हैं
यादाश्त भी कमज़ोर है मेरी बहोत
बहोत कुछ वो भी भूल गयीं हैं।
नितेश वर्मा
एक दफा फिर जुबाँ पे उतर गयीं हैं
गांव की पगडंडियों पर
नहर से होकर खेत तक
आम की क्यारियों से
अचानक जो गुजर गयीं हैं
उस पुराने से खंडहर स्कूल की
मैथस की वो मिस आज भी याद हैं
गर्लस स्कूल की सारी लड़कियां
ज़ेहन पे आकर फिर ठहर गयीं हैं
बात-बहस तो सारी बस
अब ख्यालों की ही रह गयीं हैं
चूल्हे की गर्म सुलगती आंच भी
नाजाने कबकी बुझ गयीं हैं
यादाश्त भी कमज़ोर है मेरी बहोत
बहोत कुछ वो भी भूल गयीं हैं।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment