सिलसिला आप कहने से जारी हुआ था फिर तुम पर बात बनने लगीं। वक़्त धीरे-धीरे ढलता गया, ढलते वक़्त के साथ तुम-तुम कुछ ज्यादा हुई और बात तू-तू.. मैं-मैं.. तक पहुँच गई। नजदीकियों को शायद कहते है खुद की नज़र लग गयी और फिर दो जवाँ जिस्म अलग हो गए.. बूढ़े से खिसियाते उस दिल को फिर से हवा में उछालते हुए जो फिर एक मकां तलाश रहा था, कुछ दिनों के ऐश के लिये।
ये मुहब्बत अब तो बाज़ार होने लगी है
ऐश करने की अजब द्वार होने लगी है।
सिमट जाऐगा मुख्तसर से लफ्जों में ये
जो दिल से तेरे ये व्यापार होने लगी है।
नितेश वर्मा और ऐश
ये मुहब्बत अब तो बाज़ार होने लगी है
ऐश करने की अजब द्वार होने लगी है।
सिमट जाऐगा मुख्तसर से लफ्जों में ये
जो दिल से तेरे ये व्यापार होने लगी है।
नितेश वर्मा और ऐश
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