फिर किसी रोज़ होगी तुमसे बातें इशारों में
आज ग़ज़ल भी चोरी हो गयी है बाजारों में।
आज फिर दर्द हुआ तो तुम याद आ गयी
मरहम सा जैसे दबा शख्स है तलवारों में।
घुटन सी हो गयी है अचानक इस जहां से
जुबाँ तड़पी है बयां कल होंगी अखबारों में।
आखिर क्या होगा इस अदीबी मुल्क का
वर्मा जहाँ अदीब ही बैठे हो मक्कारों में।
नितेश वर्मा
आज ग़ज़ल भी चोरी हो गयी है बाजारों में।
आज फिर दर्द हुआ तो तुम याद आ गयी
मरहम सा जैसे दबा शख्स है तलवारों में।
घुटन सी हो गयी है अचानक इस जहां से
जुबाँ तड़पी है बयां कल होंगी अखबारों में।
आखिर क्या होगा इस अदीबी मुल्क का
वर्मा जहाँ अदीब ही बैठे हो मक्कारों में।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment