कुछ बरसों पहले की लिखी कविता
और बहोत पुरानी सी एक तस्वीर
बदलते धूप में अलसाये से चेहरे
मुख़्तसर सी वो अचानक मुलाकात
इंकलाब लेता हुआ कैद कोई आवाज़
सब आखिर में आकर बिखर गया
कोई फलसफा मुझमें भी ठहर गया
अब जब भी होता हूँ आतुर
खुद को रख देता हूँ मैं सामने
कविता और उस तस्वीर के आमने।
नितेश वर्मा
और बहोत पुरानी सी एक तस्वीर
बदलते धूप में अलसाये से चेहरे
मुख़्तसर सी वो अचानक मुलाकात
इंकलाब लेता हुआ कैद कोई आवाज़
सब आखिर में आकर बिखर गया
कोई फलसफा मुझमें भी ठहर गया
अब जब भी होता हूँ आतुर
खुद को रख देता हूँ मैं सामने
कविता और उस तस्वीर के आमने।
नितेश वर्मा
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