Wednesday, 16 March 2016

अब शायद ना मिले हम

अब शायद ना मिले हम
वक़्त अब मुसाफिर ना हो
तुमसे ये फ़ालतू बातें ना बने
इंतजार बेहिसाब अब ना हो
तुम्हारी मशगूलियत
बेशक आडे आ जाए
मुख़्तसर मुलाकात अब ना हो
मुख़्तलिफ़ हालात हमारे हो
ख़्वाहिशात अधूरे सारे हो
तुम फिर से तुम ना बनो
हम भी पीछे तुम्हारे ना हो
दूरियों के दरम्यान साँसें हो
उठ-उठकर रातें बातें ना हो
कैडबरी, कोल्ड-ड्रिंक्स, चाय
तमाम एहसासात बेगारी हो
एक अलग दुनिया के तुम राजा
एक शहर के शायद
अलग बादशाहत हमारी हो
बदले इस वक्त तमाम तारे हो
चाँद बस आँगन हमारे ना हो
अब शायद ना मिले हम
वक़्त अब मुसाफिर ना हो।

नितेश वर्मा और अब शायद।

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