Monday, 28 March 2016

किसी बारिश के बाद जो धूप खिली थी

किसी बारिश के बाद जो धूप खिली थी
वो आ गई थी अपने दीवार से लगकर
मुझको महसूस करने को
मेरी उंगलियों से जो हल्की सी
उसकी नर्म उंगलियाँ लग गई थी
इस ओर से मैं पागल हुआ जा रहा था
और उस ओर से वो शरमाई जा रही थी
कुछ देर खामोशी में मुहब्बत गुजरी
फिर.. ढलती शाम की..
अज़ान ने हमपे एक नक़ाब रख दिया।

नितेश वर्मा

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