उसे जमाने का डर है इश्क़ निभाने में
यहाँ हर रोज़ जाँ जाती है समझाने में।
उसको भी फिक्र है थोड़ी सी मेरी भी
ठीक 7 बजे फोन करती है मनाने में।
गाँव के लडके भी अब ढीठ हो गये है
मुश्किल है घर से यूं निकल आने में।
हर रोज़ कमरे की तलाशी चलती है
ना भेजो चिठ्ठियाँ तंग हूँ मैं छिपाने में।
तुम शहर से लौटकर अब आ जाओ
नहीं डरती मैं तुम्हें यूं अपना बताने में।
नितेश वर्मा
यहाँ हर रोज़ जाँ जाती है समझाने में।
उसको भी फिक्र है थोड़ी सी मेरी भी
ठीक 7 बजे फोन करती है मनाने में।
गाँव के लडके भी अब ढीठ हो गये है
मुश्किल है घर से यूं निकल आने में।
हर रोज़ कमरे की तलाशी चलती है
ना भेजो चिठ्ठियाँ तंग हूँ मैं छिपाने में।
तुम शहर से लौटकर अब आ जाओ
नहीं डरती मैं तुम्हें यूं अपना बताने में।
नितेश वर्मा
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