मुल्क की हालात आपसे छुपी नहीं
गरीबों की बस्ती भी अब रही नहीं।
फिर से घरौंदे जंगल में बनाने होंगे
इंसा इस जमाने में अब कहीं नहीं।
टूटकर चाहिये जिसको भी चाहिये
इश्क़ निभाइये आप मजहबी नहीं।
नहीं कोई शिकायत दर्ज होगी अब
इल्जामें-कत्ल भी है वो खूनी नहीं।
जला दीजिये मकाँ सारी रातों-रात
पैसों की कमी आपको है ही नहीं।
एक-एक कतरा खून रो रहा वर्मा
इंसाफ़ की गुहार उसने सुनी नहीं।
नितेश वर्मा
गरीबों की बस्ती भी अब रही नहीं।
फिर से घरौंदे जंगल में बनाने होंगे
इंसा इस जमाने में अब कहीं नहीं।
टूटकर चाहिये जिसको भी चाहिये
इश्क़ निभाइये आप मजहबी नहीं।
नहीं कोई शिकायत दर्ज होगी अब
इल्जामें-कत्ल भी है वो खूनी नहीं।
जला दीजिये मकाँ सारी रातों-रात
पैसों की कमी आपको है ही नहीं।
एक-एक कतरा खून रो रहा वर्मा
इंसाफ़ की गुहार उसने सुनी नहीं।
नितेश वर्मा
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