अरे यार इधर से जब भी गुजर गये
तुमसे मिले पहले फिर हम घर गये।
ऐसा नहीं है कि हम मौकापरस्त है
असलियत बाज़ारें हम भी कर गये।
चराग़ उसका आँगन में जलता रहा
रौशनी से हुआ जो अँधेरा डर गये।
बदल दो इसे भी हर बार की तरह
झूठी बातों से है जो लोग सुधर गये।
इश्क़ भी मनचलों की है आज वर्मा
शाइर भी मयखाने से जुबाँ भर गये।
नितेश वर्मा
तुमसे मिले पहले फिर हम घर गये।
ऐसा नहीं है कि हम मौकापरस्त है
असलियत बाज़ारें हम भी कर गये।
चराग़ उसका आँगन में जलता रहा
रौशनी से हुआ जो अँधेरा डर गये।
बदल दो इसे भी हर बार की तरह
झूठी बातों से है जो लोग सुधर गये।
इश्क़ भी मनचलों की है आज वर्मा
शाइर भी मयखाने से जुबाँ भर गये।
नितेश वर्मा
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