Saturday, 5 March 2016

अरे यार इधर से जब भी गुजर गये

अरे यार इधर से जब भी गुजर गये
तुमसे मिले पहले फिर हम घर गये।

ऐसा नहीं है कि हम मौकापरस्त है
असलियत बाज़ारें हम भी कर गये।

चराग़ उसका आँगन में जलता रहा
रौशनी से हुआ जो अँधेरा डर गये।

बदल दो इसे भी हर बार की तरह
झूठी बातों से है जो लोग सुधर गये।

इश्क़ भी मनचलों की है आज वर्मा
शाइर भी मयखाने से जुबाँ भर गये।

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment