Tuesday, 20 December 2016

यूं ही एक ख़याल सा..

छोड़ मुझे!
-तेरे में ऐसा क्या है जो मुझे तेरे अलावा कुछ और दिखता ही नहीं।
हाथ छोड़ दे मेरा.. बहुत दर्द हो रहा है!
-मैंने इन्हें ना छोड़ने के लिए थामा हैं.. मैं तुम्हें कभी छोड़ नहीं सकता।
चुपचाप से छोड़ दे मेरा हाथ.. वर्ना मैं शोर मचा दूंगी।
-क्या कहेगी.. शोर मचाकर? ज़रा मैं भी सुनूँ!
मर जा तू कहीं जाकर। मुझे तो छोड़ दे!
-नहीं.. नहीं छोड़ूँगा! और मरकर भी कहाँ जाऊँगा.. वापस आकर तुझमें ही लिपट जाऊँगा।
हें! अज़ीब लड़का है ये।
-अज़ीब तो हूँ थोड़ा.. मग़र तुझसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ.. कभी आजमाइश में डालकर देख लेना।
इसकी कोई जरूरत नहीं! मुझसे दूर ही रहा कर तू।
-कितनी दूर?
कुछ ऐसा कि मैं ज़मीं बन जाऊँ और तू आसमां।
-काफ़ी बेहूदगी भरा ख़याल है.. पता नहीं तेरे हलक से ये कैसे उतर गया?
अब जो मेरे दिल में है वहीं ज़ुबाँ से उतरेगी ना!
अब छोड़ दे मेरा हाथ।
-छोड़ दूँ?
हाँ! छोड़..
-तुझे पता है मेरी माँ क्यूं कहती है?
नहीं! और मुझे कैसे पता होगा ये की तुम्हारी माँ क्या कहती है?
-सुन! मेरी माँ कहती है - अग़र लड़की जब मर्द से हाथ छुड़ाने लगे ना तो ये मत समझो की वो तुम्हें छोड़ के जा रही है बल्कि ये समझ लो कि वो तुम्हें छोड़ के जा चुकी है।
बकवास मत करो!
-तुझे इसका इल्म नहीं है इसलिए तुझे ये बकवास ही लगेगा। ख़ैर तू जा.. मैंने हाथ छोड़ दिया है तेरा।
थाम के रख.. और जरूरत पड़े तो हक़ जता लिया कर। तू मर्द का बच्चा है.. शेर का नहीं जो डर जायेगा।
-तू अज़ीब है!
तुझसे तो कम। ले पकड़ के दिखा फ़िर से!
-अरे! जा.. तुझे पकड़ के रखूँगा मैं। किसी और को पकड़.. आईने में ख़ुदको इक दफ़ा निहार फ़िर कोई बात किया कर!
मर जा कहीं जाकर कुत्ते!
-मैं नहीं मरता वो भी इतनी सी छोटी बेइज्जती के बाद.. कभी नहीं। और तबतक नहीं मरूँगा जबतक तू ख़ुद मुझसे आकर नहीं कहेगी की ले थाम ले.. इन हाथी जैसे हाथों को.. और मैं थामूँगा और उस बोझ से फ़िर मर जाऊँगा। वज़्न कम कर अपना भगवान के वास्ते!
चल अब कट ले जल्दी।
-हाँ.. हाँ! जा रहा हूँ रे हाथी.. ज्यादा चिंघाड़ मत!

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

जब कोई लिहाफ़ उधेड़ता रहता है

जब कोई लिहाफ़ उधेड़ता रहता है
एक जिस्म क़ैद हो मिलता रहता है।

जब मैं वीरान हो जाता हूँ कहीं पर
एक शख़्स ख़ुदमें चीख़ता रहता है।

बिगाड़ा हुआ है ये शह्र मुहब्बत में
और एक आशिक़ लड़ता रहता है।

जो यक़ीन हो जाता उसे मुझपर यूं
कौन कहता जाँ बिलखता रहता है।

हवाएँ रूख़ बदल रही हैं अब वर्मा
बदन ये ख़ुदमें अकड़ता रहता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मुहब्बत मैं तकलीफ़ हूँ क्या

मुहब्बत मैं तकलीफ़ हूँ क्या
इतना बड़ा कमजर्फ़ हूँ क्या?

मुझे बर्बाद करती रही इश्क़
मैं मिटता हुआ हर्फ़ हूँ क्या?

शाम कल धुएँ में मिली मुझे
पिघला हुआ मैं बर्फ हूँ क्या?

वो दीदार आँखों में ज़ब्त है
तस्वीर से उठा तर्फ़ हूँ क्या?

दर्द रात देर तक रही वर्मा
सुब्ह का कोई जर्फ़ हूँ क्या?

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे

वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे
जब लोग मुझसे सवाल करते थे
जब मैं मुँह ढ़ककर सो जाता था
लोग जब लानत भेजते थे मुझपे
मैं जब जीता था दूसरों के भरोसे
जब ये बेरहम ज़माना नोंचता था
मेरे ख़ाल को माँस से अलग कर
मैं चीख़ता था इक ख़ामोशी में
जब लोग बेहूदगी बताते थे इसे
जब ये ख़ून ठहर जाता था मुझमें
ज़हर होकर फ़ैल जाता था जब
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे

जब खुले बर्तन खटकते थे रात में
जब ये घर अँधेरे में चूर रहता था
जब लिहाफ़ सर्दियों से हार जाती
जब आँख खाली-खाली रह जाती
रात जब मातम के लिये आती थी
जब थकन बैठ कर हो जाती थी
किताब जब कुछ नहीं बताती थी
मेरा हारना उन दिनों में वाज़िब था
रो लेना बिलखकर ज़ायज भी था
तमाम लोगों के पत्थरों से ज़ख़्म
और आह! भरकर फ़िर लौटना
इस तरह इन महीनों का गुजरना
भूलाता नहीं है दिल कुछ भी ये..
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं
मैं ठहरा रहा.. किसी को गौर हुआ नहीं।

इश्क़ भी किया, काम भी करता रहा मैं
मगर ज़ाहिर करुँ शउरे तौर हुआ नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

जेल गए हो कभी तुम?
-क्या?
क्या.. क्या? सीधा सा सवाल है।
-काफ़ी वाहियात सा सवाल है.. सुधर जाओ! अच्छे लड़के जेल नहीं जाते।
हा हा हा!
-इसमें हँसने वाली कौन सी बात थी?
अच्छा हटाओ ये सुनो.. जेल गए हो तुम कभी?
-फ़िर वही सवाल? नहीं गया यार!
तो सुनो! मर्द एक बार जेल नहीं गया तो फ़िर क्या ख़ाक काम किया।
-अब मैं तुम्हारे लिए जेल भी जाऊँ?
जाऊँ का क्या मतलब है.. जाना ही पड़ेगा।
-अरे यार! मैंने ये तुमसे मुहब्बत ही क्यूं कर ली?
वो सब नहीं पता मुझे। तुम्हें तो जेल जाना ही पड़ेगा मेरे लिए.. कमसेकम एक बार तो ज़रूर।
-यार! तुम्हारा वश चले तो.. मुझे तुम जहन्नुम भी भेज दो। तुम्हें नहीं लगता तुम मुझे हर बार इस इश्क़ का हवाला देकर तंग किया करती हो?
अग़र इश्क़ में वादे शर्त के मयार पर खड़ी हो ना तो समझो की इश्क़ डूब गया तुम्हारा।
-बेवकूफ़ मत बनाओ मुझे! मैं सब समझता हूँ.. चला जाऊँगा जेल तुम्हारे लिए। मगर हाँ.. सिर्फ़ एक बार ही जाऊँगा.. समझी तुम।
हाँ! समझ गई। अब सुनो..
-सुनाओ.. अब क्या सुनाना रह गया?
आज रात तुम मुझे लेकर भाग जाओ.. दिखा दो सबको कि तुम एक असली मर्द के बच्चे हो।
-इसमें दिखाना क्या है, मैं हूँ एक मर्द का बच्चा।
फ़िर साबित करो इसे आज की रात।
-मरवाओगी तुम मुझे।
डर गए क्या?
-यार सीधे-सीधे थल्ले लगने वाली बात करती हो तुम।
अग़र थल्ले नहीं लगने ना तो इश्क़ मत किया करो। मेरा हाथ झटकों और फ़िर निकल जाओ मुझसे ख़ुदको छुड़ाकर।
-यार! तुम कुछ अज़ीब नहीं हो?
बस तुम्हें ही लगता है.. और जब तुम ये सीने पर अपनी हाथों को बाँध कर मुझको देखते हो ना तो एक बार ख़याल आता है तुमसे कोई शर्त रखूँ ही ना.. हाय! यार.. बहुत प्यारे हो तुम।
-फ़िर अपनी दिल की सुना करो Darling!
सुन लूंगी.. एक रात हवालात में काटो तो सही पहले।
-तुम बहुत ज़ालिम हो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

इतनी तड़पा के मुझको यारब मिली वो

इतनी तड़पा के मुझको यारब मिली वो
के कोई हरकत नहीं हुई जब मिली वो।

खुशियाँ चेहरे पर फ़ैल ना सकी तमाम
हैरत आँखों में दफ़्न हुई तब मिली वो।

मैं मयख़ाने में मसरूफ़ था दिनों-दिन
निकलते ही सबने पूछा कब मिली वो।

हालांकि अभी टूटना मुनासिब नहीं है
जुल्फों की हयात ला-नसब मिली वो।

नज़रें मिलने को उतारूँ हैं मेरी वर्मा
किसी सर्दियों की रात अब मिली वो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अरे.. क्या ख़ाक मुहब्बत! ख़ामाख़ाँ की बातें हैं ये सब.. क्या-क्या बताऊँ मैं.. अलमिया ये है कि..
तमाम रात कुफ़्रे-हिज़्र में गुजारी
और सुबह मुँह धोने को बैठ गए।
-बड़े चिड़चिड़े से लग रहे हो.. क्यूं क्या हुआ?
मत पूछो यार!
-ठीक है.. मत बताओ।
मतलब पूछो.. वो तो ऐसे ही कहने वाली बात है ना..
कि हमपे जानेमन कितने ग़म मुस्तैद रहते हैं
हलक में जान रहती है लब ख़ामोश रहते हैं।
-हुम्म्म्म! कबसे हुआ है ऐसा हाल?
पता नहीं! बस बेचैन रहता हूँ हर वक़्त.. उसकी याद आती है तो सौ परेशानी भी साथ आती हैं। अरे यार! मुझे तो चैन कभी मयस्सर ही नहीं।
-लेकिन याद तो कभी-कभी आती होगी?
तुम साँस लेती हो?
-ये कैसा सवाल है?
सवाल नहीं है ख़ातून ज़वाब है.. मुहब्बत की बातें किताब पढ़कर करने वाले अग़र चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छा है।
-Shut up!
How dare you?
-मुहब्बत की है मैंने.. वो अलग बात है मैंने तुम्हारी तरह कोई तमाशा नहीं बनाया उसका।
मैं तमाशा बना रहा हूँ? अज़ीब बात मत करो।
-कुछ अज़ीब नहीं कहा है मैंने! दिमाग़ से सोचो और वाहियात ख़याल से बाहर निकल आओ जनाब।
तुम्हारे मुँह लगना ही नहीं है मुझे.. हर वक़्त ज्ञान बघारती रहती हो।
-मैं तुम्हें मुँह से लगाऊँगी कभी? जाओ यार मुँह धोकर शक्ल देखो अपनी.. और मैं क्या कोई भी तुम्हें मुँह लगाने से पहले सौ बार सोचेगा।
यार! तुम ताने मारना छोड़ो भी.. हद होती है किसी भी चीज़ की।
-कमाल करते हैं जनाब.. मुँह भी लगते हैं और इज्जत की फ़िक्र भी करते हैं.. हँसीं आती है.. ख़ैर..
ख़ैर क्या? बात पूरी करो।
-मुझसे नहीं होगी कोई भी बात पूरी.. मैं जा रही हूँ।
रूको!
-कोई मतलब नहीं अब रूकने का जानेमन।
जाओ फ़िर!
-तुम भी चलो।
नहीं.. मैं नहीं जाऊँगा। तुम जाओ।
-अकेला छोड़ रहे हो मुझे?
तुम्हें जाने की जल्दी है बस.. और कोई बात नहीं है।
-मैं रूक भी सकती हूँ.. रोक के तो देखो!
नहीं तुम जाओ.. कंपकपाती ठंड में तुम्हारा झुर्रियों वाला चेहरा जब और सिकुड़ता है ना तो मुझे बहुत चिढ़न होती है।
तुम चली जाओ यही ठीक रहेगा.. मैं ठहर जाऊँ यही अच्छा है।
-झुर्रियां हैं मेरे चेहरे पर? अरे जाओ.. तुम्हारे पूरे ख़ानदान में भी मुझसे खूबसूरत कोई नहीं होगा। अकेले मरो.. मैं जा रहीं हूँ।
वही कर रहा हूँ.. जाओ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

Monday, 19 December 2016

इस तरह तमाम बोझ मूसल्लत हैं जिस्म पर हमारे

इस तरह तमाम बोझ मूसल्लत हैं जिस्म पर हमारे
पागल होकर भटकते हैं घर है तिलिस्म पर हमारे।

हमारी जात तो हमसे ही शिकायतें करती रहती हैं
सवाल भी उठे हैं तो किस-किस किस्म पर हमारे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मैं बेकरार हूँ के मुझको करार आ जाये

मैं बेकरार हूँ के मुझको करार आ जाये
भले इस जिस्म में, कहीं दरार आ जाये।

क्या खोया है मैंने इस ज़िंदगी में साहब
काश कमाई वो पुरानी हज़ार आ जाये।

दर्द भी बहुत होती हैं, पामाल रस्तों पर
चलो फ़िर.. के ATM या बार आ जाये।

जो ज़ेब खाली हो तो तकलीफ़ होती है
ये जीत भी क्या जो फ़िर हार आ जाये।

हम ख़ामोश रहे मुनासिब मानके वर्मा
हम बोलने लगे के तरफ़दार आ जाये।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अभी मरा नहीं हूँ मैं, बंद करो दफ़नाने मुझे

अभी मरा नहीं हूँ मैं, बंद करो दफ़नाने मुझे
इक आवाज़ क्या उठाईं लगे हो मिटाने मुझे।

शख़्स वे पागल नहीं थे जो खड़े थे रस्तों पर
मुनासिब तुम ही नहीं जो लगे समझाने मुझे।

क्या हुआ है तुमको इस मुकाम पर आकर
लगे हो क्यूं अब आँखें तरेर के दिखाने मुझे।

ग़रीबियत लोगों के ज़ुबाँ पे भूख लिखती है
तन की अकड़ कहती है पैसे हैं खाने मुझे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

पत्थरों की भीड़ में एक शख़्स हूँ साहब

पत्थरों की भीड़ में एक शख़्स हूँ साहब
चीख़ता हूँ ख़ुदमें कैसा अक्स हूँ साहब।

फ़िर भटक गया हूँ एक सराब होके मैं
एक तिलिस्म है अज़ीब रक्स हूँ साहब।

वही पुरानी आदत है जो बिगड़ती रही
वही अंदाज़ है आपका इश्स हूँ साहब।

आप मुंतज़िर थे जानकर हैरान है हम
आप भटक गए मैं तो नफ़्स हूँ साहब।

क्यूं इश्क़ में ये ज़ाहिली बेचैनी है वर्मा
मैं क्या कहूँ मैं ख़ुद ही नक़्स हूँ साहब।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

आपपर किसी ने आज तक Line मारी है?
ये क्या बेहूदगी है?
बेहूदगी नहीं है! बस एक सवाल है।
मुझे पता है! लेकिन एक बहन अपने भाई से ऐसे सवाले नहीं पूछा करती।
किस बाबा आदम की बातें कर रहे हैं आप? आजकल ज्यादातर Settings तो बहनें ही करवाती है। Number ले आती हैं.. उसकी दोस्त बनकर Calls भी करती हैं.. और तो और Convince भी कराती हैं उन्हें! समझा करिए.. अब बताइये? किसी ने कभी Line दिया है आपको?
तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है.. ईलाज़ कराओ अपना।
मैंने तो करवा लिया है आप भी देख लो अपना.. ये किताब में जो घूरकर देख रहे हो ना.. नाम भी पता है उसका?
चलो जाओ! नीचे जाकर पढ़ाई करो..
नहीं.. नहीं जाऊंगी मैं! जबतक आप मुझे बताऐंगे नहीं कि आपपर किसी ने Line मारा है कि नहीं?
मेरा दिमाग़ ख़राब हो रहा है पहले एक Cup चाय पिलाओ.. फ़िर बातें होंगी।
बेवकूफ़ है आप बहुत! ऐसे शर्माते रहे ना तो एक दिन चिड़िया उड़ जायेगी और आप देखते रह जाओगे बस।
हें.. चिड़ियाँ? क्या मतलब है तुम्हारा?
मतलब कुछ नहीं है। किताब से इश्क़ फ़रमाइये.. मैं चाय ले आती हूँ।
अच्छा सुनो! रहने दो चाय अभी..
फ़िर?
एक बात करनी है तुमसे!
तो कीजिए।
वो कौन है जो मुझे सोने नहीं देती.. जिसका अक़्स मुझे बेचैन करता है.. जो पल भर भी ख़्वाब में दूर हो तो पसीने से सारा जिस्म भीग जाता है.. जिसकी छाँव में धूप का कोई ज़िक्र नहीं होता है.. शायद! वही है जो मुझे Line मारती है या मैं उसपर फ़िदा हो जाता हूँ। कुछ ठीक-ठीक नहीं बता सकता।
अच्छा? इतना अज़ीब होता है?
यार! तुम्हें अज़ीबियत की पड़ी है.. यहाँ हर रोज़ मेरी जान निकलती है।
भाई! ये बंजारे की तरह आप कबसे जी रहे हो?
मैं बंजारा नहीं हूँ.. मेरा ठिकाना है.. ऊपरवाले की करम से अपना मकान है।
भाई! बंजारे वे नहीं होते जिनका अपना कोई ठिकाना ना हो.. बंजारे तो वे होते हैं जो किसी तलाश में भटक रहे होते हैं.. जिन्हें कोई ना कोई फ़िक्र सताती रहती हैं.. जो ख़ुदमें एक सराब पालकर चलते हैं और बस भटकते रहते हैं.. वे बंजारे होते हैं।
तुम ठीक कह रही हो लेकिन पता नहीं क्यूं.. दिल तुम्हारी इन बातों को मानना नहीं चाहता।
भाई! दिल कब कुछ मानता है.. उसपर या तो थोपा जाता है या जबरन मनवाया जाता है।
हुम्म्म्म!
भाई किताब घूरने लगता है और बहन चाँद।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

निकलकर इस धूप से छांव में आ जाइये

निकलकर इस धूप से छांव में आ जाइये
परेशान ना होइये, मेरे दांव में आ जाइये।

है सवाल जो मध्ये-नज़र मुहब्बत में मेरी
पायल सी खनकती है पांव में आ जाइये।

सुकून जब दिल को आये ना पल भर तो
यकीन करिए और ये गांव में आ जाइये।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

क़िस्सा मुख़्तसर : मोआशरा

आज जो भी हालात है मोआशरे में उसका ज़िम्मेदार कौन है? जवाब बहुत आसान है अगर हम इस बात को मान ले तो- हम ख़ुद!
हम ख़ुद ही हैं जो मुल्क को चलाने के लिए जिन नेताओं को Vote करते हैं वो बदकिस्मती से ज्यादातर अँगूठा छाप होते हैं। एक सस्ता सा उदाहरण ले ले तो कुछ आसान हो जाएं-
एक लड़का है.. जिसके परिवार वाले १५ लाख रुपये देकर उसे नौकरी पर लगाते है और बाद में ऊपरवाले की मेहरबानी देकर नियाज़ी बनते है, लेकिन वो बदकिस्मत ये कभी नहीं सोचते की उन्होंने किसी का हक़ मारा है।
एक वाक्या सुनिये.. कोई कहानी नहीं है इसमें.. ये एक कड़वा सच है जिसका घुँट हमारे जैसे ही लोग हर रोज़ पीते हैं.. ख़ैर, सुनिये..
हमारे यहाँ एक चचा हुआ करते थे। चचा सिद्दीकी.. नाम था उनका। पाँच वक़्त के नमाज़ी थे। हज़ किया करते थे। लोग पाकीज़गी और हलाल में उनकी कसमें खाया करते। चचा सप्ताह में एक बार आते ही आते थे। दीन की बातें करते.. ताबीज़-टंटो की बातें करते। अल्लाह के मेहरबान होने के क़िस्से सुनाते.. ऐसा समझिये की वो जब भी मिलते हमें लगता हम किसी फ़रिश्ते से मिल बैठे हैं।
एक दिन मैं चचा से मिला.. चचा का मूड कुछ ख़राब था उन्होंने मुझे झटक दिया और मेरे पापा से लगे कहने- इसे कभी बताया है तुमने.. ये क्यूं यहाँ आता है? क्या मिलाद है इसकी? आपने कभी बताया है कि मैं करता क्या हूँ?
ये सब सुनकर तो मेरा दिमाग़ बिलकुल ख़राब हो गया। दिन-भर मैं परेशान रहा शाम को जब पापा आएँ तो मैंने उन्हें बिठा लिया और सवाल किया- ये चचा सिद्दीकी करते क्या है? दिन-भर वो घूमते फ़िरते है लेकिन फ़िर भी इनके घर वो सब चीज़ मुहैया है जो कि एक अफ़्सर आला के घर में होता है।
पापा ने जब मेरा सवाल सुना तो मुझपर गुस्सा हो गए.. कहने लगे- क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? लगता है तुम्हारे चचा ने तुम्हारी कान भरी है।
मैंने कहा मुझे नहीं पता.. मैंने आपसे एक सवाल किया है आप उसका जवाब दे दे बस! अग़र चचा ने मेरी कान भरी है तो आप मेरी सवाल का जवाब देकर मेरी तसल्ली करें।
पापा ने उस दिन डाँट-डपटकर मुझे भगा दिया लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था अगले दिन फिर शाम को मैंने उन्हें बिठा लिया फ़िर वही सवाल कर दिया कि- ये चचा सिद्दीकी करते क्या है?
पापा ने देखा कि अब कोई उपाय नहीं बचा तो उन्होंने बताया- कि तुम्हारे चचा रेलवे में काम करते है.. हर ६ महीने में एक बार वो वहाँ जाते हैं और अपनी सारी हाज़िरी बनाते हैं.. ४०% Railway Superintend को देते है और बाक़ी का माल लेकर यहाँ चले आते हैं।
मैंने जब ये सुना तो मेरे कान से धुँए निकल गए। मतलब वो आदमी उस हराम के पैसे से हज़ भी करता है और ख़ुदको सच्चा इस्लामी भी बताता है? जो इंसान हमें ये बताता आया रहा है कि नमाज़ पढ़ने के लिए पाकीज़गी से ज्यादा अहमियत उसके हलाल होने से है और वो ऐसी कमाई पर ख़ुद ज़िंदा रहता है।
अब क्या हाल होगा इस मोआशरे का इससे बेहतर और कुछ नहीं ना? जहाँ तारीख़ियाँ झूठ की नींव पर रख दी जाएं उस मुल्क का हाल इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaMukhtasar

इक शिकायत की हाय जाँ निकल जाएं

इक शिकायत की हाय जाँ निकल जाएं
वो पूछ ले कुछ के ये ज़बाँ निकल जाएं।

दूर मुहल्ले में चराग़ मौजूद नहीं हैं अब
काश! के यहाँ से ये मकाँ निकल जाएं।

कोई आयेगा इस तरह ये मुमकिन नहीं
कोई छूटे अब के ये गुमाँ निकल जाएं।

सहर कुहासे से लिपटी रही थी तमाम
जो आग लगाओ ये धुआँ निकल जाएं।

है नहीं के यकीन अब ख़ुदपे मेरा वर्मा
दिल है टूटा, कब मेहमाँ निकल जाएं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

Hey! Why you're not coming? Anyone said anything to you?
You want to know the name..? It's you.. Just because of you I'm not coming.. You're the only reason!
Just shut up!
I'm not stopping myself.. You should to listen all that things.. what's going on my mind.
Why.. I?
Because, darling! You always doing the same things which hurts me.. Sometimes a lot.
I'm not hurting you ever.
Quite.. Boring! Huh..!
You blamed me?
Yes, I'm blaming you. Why you bothered with me..
Okay.. Okay! Ask me! What you want to ask?
Do you have a another boyfriend?
What rubbish! Shame on you!
What rubbish? There's nothing rubbish.. Why you are not answering my question?
Just because your question can't deserves a single word.. By the way, your question hurts me alot. It seems like.. Someone asked to you.. do you have a another father?
You.. Bitch!
Aaha! Stop screaming baby.. First fell your question then replied me, and I'm not a bitch.. You scoundrel!
You're calling me for this?
You can't deserves anything.. Stop there! Thank you for not coming..
अरे ये सब हटा दो भाई!
- और Cake?
बाहर फ़ेंको उसे जल्दी!
Hey! Listen.. I'm coming.. On the way!
Go home baby.. I'm going to sleep,now!
Please!
नया Cake लेकर आना.. और सुनो.. 10 minutes में आओ.. और आकर लड़ना मत! दिमाग़ ख़राब है मेरा.. मर-मरा जाओगे।
हें?
हाँ!
Love you.. Coming!
Everyone loves me.. Say something different!
Okay.. Bitch! I'm not coming.. Go to hell!
Hey.. You!
On the way.. Coming soon! 😆

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

तुम्हें क्या लगता है? अब वो फ़िर क्या करने वाला है?
कौन? क्या करने वाला है?
अरे वही!
वो लफ़ंगा.. मुझे तो लगता है अब वो मुँह छिपाकर इस शहर से भागने वाला है।
ऐसा नहीं है वो।
बहुत समझ है तुम्हें उसकी?
बनो मत.. मुझे तो लगता है अब वो तुम्हें फ़िर से Propose करेगा.. और वो भी सबके सामने.. बीच चौराहे पर.. तुम्हारी आँखों में आँख डालकर।
ऐसा करेगा वो?
हाँ! लग तो कुछ ऐसा ही रहा है मुझे।
तो मुँह नहीं तोड़ दूंगी मैं उसका.. बड़ा आया Propose करने वाला।
हाँ! वो तो तुम तोड़ ही दोगी फ़िर बैठ के जोड़ती रहोगी।
अरे जाओ तुमने मुझे अभी जाना ही कितना है!
खूब जानती हूँ तुम्हें मैं। दिल तोड़ने में बहुत मज़ा आता है ना तुम्हें। पहले तो दिल तोड़ दो.. इज्जत बचाओ फ़िर रात भर लिहाफ़ में रो-रोकर आँसू बहाओ। हाय! यार, उसके साथ मैंने कुछ ठीक नहीं किया.. अलापती फिरो।
बकवास बंद करो!
थम के रहा करो मुझसे.. मैं तुम्हारी कोई मुलाज़िम नहीं हूँ और ना ही कोई दिल फ़ेंक आशिक़.. समझी तुम?
निकलो अब तुम.. बहुत बड़बड़ा चुकी। अब चैन से मुझे सोने दो!
तुम अब सोओगी? क्या ग़ज़ब बात कर रही हो.. शर्म करो!
तुम कट लो यहाँ से.. मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का कोई जवाब नहीं है।
तो जवाब तैयार रखो.. कल मुकाबला करने आयेगा वो तुमसे।
मुकाबला?
हाँ! बेवकूफ़ तुम तो मुकाबला ही समझो.. इश्क़ में हारा हुआ आशिक़ बड़ा ख़ूंखार होता है।
उसका नम्बर है तुम्हारे पास?
हाँ! है।
फ़ोन लगाओ उसे अभी..
अभी.. अभी क्या कहोगी उससे?
तुम फ़ोन लगाओ।
सो गया होगा वो।
कैसे सो गया होगा.. करवटें ले रहा होगा कमीना। ख़्वाब देख रहा होगा।
तुम बहुत बुरी हो.. मैं जा रही हूँ सोने।
ऐसे कैसे चली जाओगी तुम?
ठहरो तुम! देख लो.. जा रही हूँ।
अरे! रूको ना! माफ़ कर दो.. तुम बस फ़ोन लगा के दो।
लो Ring जा रहा है..
अब काट क्यूं दिया?
नहीं रहने दो.. कल ही बात होगी उससे।
फ़िर रात भर?
रात भर.. मतलब?
मतलब कुछ नहीं है Sweetheart तड़पती रहो रात भर।
हें..! कमीनी.. मर जा कहीं जाकर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

अज़ीब इत्तेफ़ाक हुआ है यार क्या कहिये

अज़ीब इत्तेफ़ाक हुआ है यार क्या कहिये
हो गया है उनसे फ़िरसे प्यार क्या कहिये।

वो आयेंगी सपनों में आज की रात भी तो
रंग देंगी बदस्तूर दिले-दीवार क्या कहिये।

नहीं होना होता है जब कुछ भी भला मेरा
क्यूं मिलते हैं फ़रिश्ते-बाज़ार क्या कहिये।

हम कोई ग़ालिब नहीं जो दर्द अपना लेंगे
और ख़ुदा भी नहीं, ये मयार क्या कहिये।

दम घुटता रहा था अपनों के बीच में वर्मा
रिहा भी हुआ तो, अत्याचार क्या कहिये।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

हर ज़ुर्म को वो ज़ालिम यूं तहेगा हमेशा

हर ज़ुर्म को वो ज़ालिम यूं तहेगा हमेशा
घर ही बनेगा ऐसा के वो ढहेगा हमेशा।

ये मुमकिन ही नहीं है कि आप चुप रहे
तो छोड़िये वो भी चीख़ता रहेगा हमेशा।

ख़ंदा-पेशानी ज़हन में लेकर बैठे रहना
वर्ना हर नज़्र को वो बुरा कहेगा हमेशा।

यही मान लीजिए के दिल कमबख़्त है
एक सूनापन है जो यूं ही बहेगा हमेशा।

इक दर्द भी मूसल्लत है सीने पर वर्मा
क्या कहूँ क्या-क्या रोग़ सहेगा हमेशा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

दर्द भी बेहिसाब भर आये हैं मुझमें

दर्द भी बेहिसाब भर आये हैं मुझमें
जीने दो के साब मर आये हैं मुझमें।

सारी बातें सुनकर चुप रहा वो वहीं
उसकी ये हाल, डर आये हैं मुझमें।

मैंने कई बार उससे पूछा था जानी
रातें क्या ग़ज़ब कर आये हैं मुझमें।

ये बेकरारी ये जद्दोजहद ज़िंदगी में
बात करिए वे ठहर आये हैं मुझमें।

हम बेशक्ल मुहब्बत की किताब है
कई दास्तान, मग़र आये हैं मुझमें।

शायद वो नहीं समझेगा तुम्हें वर्मा
जिसका शहरे-घर आये हैं मुझमें।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अब मुझसे एक भी काम नहीं हो सकता सुबह से दौड़ता फिर रहा हूँ अग़र ओलंपिक में इतना दौड़ता तो कमसेकम इस मुहल्ले में सबके घर एक-एक मैडल रखा होता।- पप्पू ने परेशानी में अपना फ़रमान सुनाया और अपने कमरे में चला गया।
लेकिन तू मैडल ले आता तो मुहल्ले में सबके घर क्यूं रखता अपना घर तो है ही।- मम्मी ने किचन से एक मंतर फूँक फ़ेंका।
वो इसलिए क्योंकि, मुझे पता है कि वो एक-एक करके आप ख़ुद उन्हें बाँट देती।- पप्पू ने भी ईट का जवाब ईट से दिया। वो क्या था ना.. माँ थी सामने वर्ना पप्पू से अच्छा पत्थर कोई नहीं फ़ेंकता।
मैं..मैं भला क्यूं किसी को कोई चीज़ देने लगी। पहले एक काम कर देख कोई आया है बाहर, शायद दूधवाला है, जाकर दूध ले ले बेटा। - मम्मी ने किचन से फिर पप्पू को काम सौंप दिया।
मम्मी मैंने एक बार बोल दिया ना, मैं नहीं जा रहा तो बस नहीं जा रहा।- पप्पू ने भी ढिठाई से जवाब दे सुनाया।
अच्छा याद आया वो मिश्राजी की बेटी होगी।
कौन मिश्राजी की बेटी?
अरे वो सुहानी, उसी को कुछ काम था। मैंने मना भी किया था लेकिन वो बोलने लगी की उससे तुम्हारी बात हो गई है, इसलिये वो आ रही है। शायद वही होगी।
पप्पू का इतना सुनना था कि वो दौड़ के भागता हुआ दरवाज़े पर गया, सामने सुहानी खड़ी थी। वो उसे देखता रह गया।
सुहानी ने अग़र उसे ना टोका होता तो वो सुहानी को अपने सपने में लेकर कहीं और चला गया होता और वो बारिश में बाहर भीगती रहती।
पप्पू को फिर तुरंत सुहानी का ख़याल आया और उसने दरवाज़ा खोल दिया।
अरे! तुम तो पूरी भीग गयी हो? -पप्पू ने ख़याल जताते हुए कहा।
नहीं भीगती अग़र तुम बुत बनकर नहीं खड़े हुए होते तो.. - सुहानी ने बड़े नाराज़ी से कहा।
अरे मुझे लगा दूधवाला होगा.. इसलिए.. पप्पू ये कहते-कहते चुप हो गया।
बड़े आएँ! दूधवाला होता तो इतनी देर तक दरवाज़ा ना खटखटाता.. एक बार नहीं खोलते तो वो कहीं और निकल गया होता।
टाँगे नहीं तोड़ देता मैं.. कैसे निकल जाता कहीं और..?
बस इसीलिए मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आती.. जब देखो मार-काट।
अच्छा छोड़ भी दो ना.. गुस्सा थूक दो!
कहाँ थूँकू?
उसके मुँह पर ही थूक दो बेटा! तीन दिन से उसने नहाया भी नहीं इसी बहाने नहा तो लेगा कमसेकम।- मम्मी ने किचन से ही बकवास लगा दी।
मम्मी.. - पप्पू ने माँ को समझाते हुए आवाज़ लगाया.. माँ चुप हो गई।
अच्छा ये बताओ तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ, बिलकुल।
नहीं बेटा वो नहीं जा पायेगा वो बहुत थका हुआ है मैंने तुम्हें बताया भी तो था।
मम्मी..- अरे छोड़ो.. इनकी तो बस यही आदत है। तुम बताओ कहाँ चलना है?
हुम्म्म्म!
अरे! बारिश में तुम धनिया लाने जाते नहीं हो और पतंगे उड़ाने का बहुत शौक है? क्या बात है?
पतंगे?- सुहानी ने पप्पू की आँखों में देखते हुए पूछा।
पतंगे? अरे! माँ क्या हो गया है आपके जोक्स को आजकल?
अरे! छोड़ो इन्हें तुम.. आजकल कोई सस्ती सी रोमांटिक नॅाबेल पढ़ रही है.. दिमाग़ सठियाया हुआ है इनका। तुम बात करो..
तो तुम चल रहे हो मेरे साथ..
कहाँ? बताओ तो सही?
मेरे साथ.. कहीं दूर इस बारिश में भीगने.. मैं अकेले नहीं जा सकती.. तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ! चल लूंगा.. लेकिन मुझे बारिश में भीगना कुछ ठीक नहीं लगता।
तुम भी ना कैसी बातें करते हो? तुमने समुंदर देखा है?
हाँ! क्यूं?
मैंने कभी नहीं देखा।
मैं नहीं जा रहा.. समुंदर दिखाने वो भी इस बारिश में।
तुम बड़े नवाब हो? कैसे नहीं चलोगे मैं देखती हूँ।
मैं नहीं जा रहा.. हाँ! मुझे याद आया मेरे सर में बहुत दर्द है मैं कहीं नहीं जा सकता। आह!
बहाने मत बनाओ।
कसम से.. अचानक बहुत तेज़ दर्द होने लगा है।
मैं दबा दू.. थोड़ी देर।
हाँ! दबा दो।
फ़िर चलोगे?
हाँ! नहीं चलूँगा तो तुम मेरी जान नहीं ले लोगी?
बेटा! धनिया भी लेते आना!
मम्मी..? क्या है ये..? हद है! 😆

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

ये अज़ीब दुनिया है अब यहाँ से निकल

ये अज़ीब दुनिया है अब यहाँ से निकल
ख़ामोशी अब तो तू मेरे ज़बाँ से निकल।

बहुत चीख़ता रहा है ये जिस्म चोटों पर
कुछ रहम कर तू, इस मकाँ से निकल।

चारों तरफ़ जो फ़ैल चुकी हैं वफ़ादारी
थोड़ा आग लगा, और धुआँ से निकल।

इक तिलिस्म क़ैद है, तुझमें सदियों से
इक प्यास ले औ' इस समाँ से निकल।

साहेबान ख़िताब आपका ही है समझें
कहने वाले के, फ़रेबी गुमाँ से निकल।

जो पत्थर तेरे कूचे का नहीं हुआ वर्मा
ये शह्र छोड़, औ' इस जहाँ से निकल।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तुम्हें याद आता है कुछ

तुम्हें याद आता है कुछ
वो बिताए हँसीं रात के लम्हे
जब मिल बैठती थी
हमारी निगाहें कई सवाल लेकर
जब चाँद आधा बादलों से निकलकर
फैल जाता था सुदूर ज़मीन पर
जब टकटकी लगाएँ हम देखते थे
चाँद पर चढ़ते किसी तारे को
जब शाम की जलती पुआल
धुँए में ग़म जो उड़ा ले जाती थी
जब तुम लिपट जाती थी सीने से
आँख में धुँए के जाने के बहाने से
मैं पूछता था जो वज़ह तुमसे
तुम और लिपट जाती थी सीने से
तुम्हें याद आता है कुछ
तुम्हें याद आता है कुछ

दिन में होते उजाले पर
जब ओस आकर चिपकती थी
जिस्म जब लिहाफ़ बनकर
सीने में आज़ाद हो जाती थी
उठता था जो बहसों का सिलसिला
तुम जब लड़ जाती थी मुझसे
जब तुम्हारी नाज़ुक उंगलियां
उलझी जुल्फों को संवारती थी
लट जब उलझकर गिरते थे
नर्म गुलाबी से उस होंठ पर
तुम झटककर जब सो जाती थी
मेरे कांधे पर रखकर अपना सर
मैं डूब जाता था उन आँखों में
तुम मूंद लेती थी जब उनमें मुझे
एक कश्ती गुजरती थी फ़िर
कई शाम हमारे तमाम शहर में
तुम्हें याद आता है कुछ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

तुमने फ़िर उसे बुला लिया?
-हाँ! तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
पापा उसकी टाँगे तुड़वा देंगे.. फ़िर फ़रमाते रहना इश्क़ उस लंगड़े से.. बड़ी आयी कमीनी!
-वो टाँगे तुड़वा के चुप नहीं बैठने वाला.. करारा जवाब दिया था उसने पापा को.. याद नहीं है क्या तुम्हें?
सुना था मैंने.. भाई तो उसकी जान ले लेंगे अग़र वो तुम्हारी तरफ़ फटका भी तो। भाई के गुस्से को तुमने अभी देखा नहीं है। मेरी मानो तो ज्यादा पंगे मत लो और उसे जाने को कहो।
-अरे जाओ! मर्द का बच्चा है वो.. अपनी टाँगे तुड़वा लेगा मगर बिना मिले मुझसे तो वो हिलेगा भी नहीं.. वहाँ से।
खूब समझती हो तुम उसे.. फट्टू है वो एक नम्बर का। पापा के सामने तो एक आवाज़ नहीं निकलती उससे.. बड़ा आया मर्द का बच्चा।
- इज्जत कर जाता है वो उनकी। हालांकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वो उनसे डर जाता हो।
अरे! नासमझ.. तू तो ख़ुद मरेगी ही.. साथ-साथ उसे भी ले डूबेगी। वो तो नासमझ है तू क्यूं बेवकूफ बन रही है?
-उसे सब समझ में हैं.. मैंने सारी बातें उसे खुलकर समझा रखी हैं। अब इतना भी बच्चा नहीं है वो.. बस 4 साल ही छोटा है वो मुझसे। अब उसे कोई शहजादी चाहिये तो इतना जोख़िम तो उठाना ही पड़ेगा.. वर्ना मरे कहीं और मेरी बला से।
अच्छा! बहुत खूब बोल लेती हो तुम.. इतराना छोड़ो और उसे फ़ोन लगाओ।
-मुझे पता है वो बिना मुझे देखे नहीं जायेगा और मैं कोई फोन नहीं मिला रही..
किस बात की बेचैनी है तुम्हें? कहाँ जायेगी उससे मिलकर.. वो एकदम कंगाल इंसान है.. सर्दियों की एक रात जब फुटपाथ पर बितायेगी ना तो सब होश ठिकाने आ जायेंगे।
-अरे इतना भी गिरा हुआ नहीं है वो.. कहीं फ़्लैट ले रक्खा है उसने।
हुम्म्म्म! तो बात यहाँ तक बढ़ गई है?
-ये तो कुछ भी नहीं.. बात बहुत आगे तक निकल गई है।
हाय.. दइया! कहीं तुम्हारे बीच कुछ ऐसा-वैसा ते नहीं..
-Exactly! अब आयी ना पते वाली बात पर तुम।
तुम्हारी तो ख़ैर नहीं। आज तो बेटा तुम्हारी चमड़ी तुम्हारे जिस्म से अलग हो ही जायेगी.. पापा को बस आने दो।
-अच्छा सुनो तो! ये बताओ कैसी लग रही हूँ मैं?
ख़ुद उसी से पूछ लेना.. सारी हदे तोड़कर जाओगी तो..
-सुनो तुम भी.. Lecture मारने लगी हो बहुत। अब ये आईना हटवा देना यहाँ से उसकी आँखों में ही देखकर पूछ लूंगी.. कैसी लग रही हूँ मैं?
और अग़र उसमें पहले से ही कोई और छिपा हुआ होगा तो..?
-कैसी मरी हुई बात कर रही हो?
जब यकीन होगा ना तो तुम ख़ुद आकर कहोगी आईना मत हटाओ.. उसे तोड़ दो और बाहर फ़ेंक आओ।
-इतनी ज़ालिम मत बनो!
तो तुम पहले उसे जाने को कहो.. मैं नहीं चाहती की आज कोई Dramatic Scene बने।
-मैं पीछे के रास्ते से मिल लू उसे.. Please! ना मत कहना अब।
चल मिल ले.. लेकिन जल्दी वापस आना आधे घंटे में मेरी मँगनी है.. समझी कुछ?
-हाँ-हाँ! सब समझ गई। ये बताओ कैसी लग रही हूँ।
बहुत प्यारी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

कौन है ये जो तुममें कबसे उलझता जा रहा है

कौन है ये जो तुममें कबसे उलझता जा रहा है
मैं क्या कहूँ! तू तो मुझसे ही कटता जा रहा है।

जिस्म सर्दियों में हर बार क्यूं बदलने लगती है
एक इन्सान मुझमें ही कबसे बँटता जा रहा है।

तुम बेइंतहा हिसाब करने में मसरूफ़ रहे हो
वो फ़कीर ही माशरे को तो ठगता जा रहा है।

दिल जो घायल हुआ, तो ख़याल ज़ाहिर हुआ
हम मुहब्बत निभाते गए वो मरता जा रहा है।

इस तरह खूब हल्ला मचाते फिरे हैं मुसाफ़िर
वर्मा, तू है जो बेहयाई से गुजरता जा रहा है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

फोन करूँ?
करो.. तुम्हें कबसे इज़ाजत लेनी पड़ गई?
नहीं.. वो मुझे लगा तुम मुझसे नाराज़ होगे।
मैं..? नहीं तो! ऐसा क्यूं लगा तुम्हें?
कल तुम्हें थप्पड़ जो मार दिया था.. इसलिए।
उसे याद मत दिलाओ..
जोर की लगी थी क्या?
हाँ! बहुत जोर की। ऐसा करारा थप्पड़ तो मैंने आज तक नहीं खाया था। तुम बहुत ज़ालिम हो यार.. बिलकुल मेरे बाप की तरह।
हैं.. सच में? ऐसा क्या?
और नहीं तो क्या?
तुम बदल तो नहीं जाओगे ना?
पता नहीं! इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास।
अग़र हालात बदलती हैं तो?
शायद! यकीन से नहीं कह सकता कुछ।
कुछ तो कहो..
ज़िद मत करो।
करूँगी.. कहो.. कुछ।
तुम बहुत बुरी हो.. मुझे तुमसे चिढ़न है.. वो बात अलग है तुम खूबसूरत भी हो।
किस बात से चिढ़न है तुम्हें..? मैं बहुत खूबसूरत हूँ इससे..?
नहीं! इससे की तुम्हारा कोई यकीन नहीं.. हर रोज़ तुम बदलती जाती हो और सारी बकवास मेरे सर पर उड़ेल देती हो। प्यार नहीं कर सकती ये अलग बात है लेकिन प्यार से रह तो सकती हो ना? इसमें क्या हर्ज़ है?
तुम बोल रहे हो ये..?
हाँ! अब फोन ही कर लो।
तुम करो.. ना!
चलो रहने दो.. बाद में करूँगा।
अभी करो..!
तुम मरो.. अभी.. Bye!
यार! तुम्हारा मसला क्या है?
अपना इलाज़ कराओ, बेवकूफ.. मुझसे बहस मत करो।
सुनो..?
मरो तुम.. Bye!

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

मुझे नहीं पता है.. अब वो कहाँ है?
और ना ही अब मैं किसी मृगतृष्णा में जीता हूँ।
वो शायद अज़ीब थी!
या मैं ही ख़ुदमें उलझा हुआ था.. पता नहीं।
उसे मेरी बातें ज़हर लगती थी.. मेरा बोलना उसे पसंद नहीं था। मेरी शक्ल उसे चिढ़ाती थी.. लेकिन जहाँ तक मैंने उसे जाना था वो शराब नहीं पीती थी.. और ना ही किसी बात पर एकदम से चुप हो जाती थी.. धीरे-धीरे वो बदलने लगी थी बिलकुल उतना जितना के किसी डूबते हुए सूरज के साथ हवाएँ बदलने लगती हैं।
वो बहुत खूबसूरत थी लेकिन अज़ीब थी.. वो बातें बेतरतीब किया करती थीं जिनका कोई मतलब नहीं हुआ करता था.. उसकी बातें अक्सर मुझे परेशान भी करती थी मगर वो अक्सर कहा करती.. मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपने कंधों पर सर रखकर रोने भी देती.. कभी यकायक सीने से भी लगा लेती। वो मुझे पागल बुलाया करती थी.. हालांकि पागलों सी हरकतें उसकी सारी थी। वो उलझी हुई रहती थी मगर ख़ुदको हमेशा सुलझा हुआ दिखाती थी।
मुझे उसकी इसी बनावटी दिखावे से अक्सर चिढ़न हुआ करती थी.. कई बार मैंने ये ज़ाहिर भी किया था.. मगर वो मुझसे इसके लिए कभी लड़ती नहीं थी.. उसकी इसी बात पर मैं उससे अक्सर हार जाया करता था। एक दिन मेरा उसपर ये ज़ालिम हाथ भी उठ गया.. फ़िर ये बातें रोज़ की होने लगी.. ये रोज़ का So Called Drama.. शायद उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आया।
फ़िर..
इक रोज़ वो मुझसे दूर चली गई.. दूर.. बहुत दूर.. इतनी दूर कि अब..
मुझे नहीं पता है.. अब वो कहाँ है?

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #Prosepoetry #YuHiEkKhyaalSa