Monday, 30 November 2015

उसे भी कहाँ फुरसत हैं जो सुने कहानी तेरी

उसे भी कहाँ फुरसत हैं जो सुने कहानी तेरी
दो लफ्जों में बयाँ करो जो भी हैं बयानी तेरी।

तुमसे बढकर और कुछ भी नहीं हैं मुझमें यूं
फिर क्यूं यूं कर जाती हैं निगाहें बेईमानी तेरी।

महज़ मौकापरस्ती ही नहीं हैं सवालों में तेरे
एक कसक उठी जब उठी यूं परेशानी तेरी।

मेयारी सुकून के सारे दौर गुजर चुके हैं वर्मा
खून खौलता हैं जभ्भी होती हैं मनमानी तेरी।

नितेश वर्मा


Sunday, 29 November 2015

व्यस्तता भी जीवन की एक सच्चाई है

व्यस्तता भी जीवन की एक सच्चाई है
मगर नजानें क्यूं ना ये समझ आयी है।

दो पग कंकड़ों की रस्तो पर पैदल हो
तलवों में चींख जुबाँ पर हँसीं छायी है।

मेरा दर्द और कौन समझ पाऐगा रब
जब खुशी ही मेरे हिस्से गम लायीं है।

तू मुझमें खुद को ना तलाश कर वर्मा
मैंने खोके यूं शौहरत दौलत पायी है।

नितेश वर्मा

Saturday, 28 November 2015

रात भर भी आँखों से आँसू बहाया ना गया

रात भर भी आँखों से आँसू बहाया ना गया
खर्च की दौलत बहोत पर कमाया ना गया।

कई बहानों से ठुकराते रहे उनको हम भी
लगता हैं फिर सोचके हमें मनाया ना गया।

वो तो टूटकर भी बिखरने से घबराता रहा
सर्द की रात भी ख़तों को जलाया ना गया।

गुजर जाती हैं आवाज़ें होके खामोश यूंही
बात दिल की जुबाँ को ये बताया ना गया।

हैंरत में है जो परिशां से आलम छाया रहा
कोई चेहरा हैं दर्द का जो छुपाया ना गया।

नितेश वर्मा

Friday, 27 November 2015

ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं

ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं
हर घाव बिन मरहम के हैं
फिर से
खूनी खंजर चलाये गये हैं
मासूम आँखें जलाये गये हैं
चीखें, चीत्कारें फिर से
फिर से कत्लों का तमाशा
खून-खराबे फिर से
फिर से प्रचंड मजहबी बातें
फिर से शक्लों पे दाग
फिर से वहीं एक बीती बात
अंधी दुनिया, बेचारी समाज
हैं सड़कों पर रक्त-प्रवाह
जाने क्यूं
फिर से हम सताये गये हैं
ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं।

नितेश वर्मा और फिर से।

यूं ही एक ख्याल सा..

वो आयी और मेरे बगल में सो गयी एक करवट लेकर.. और मैं चादर की सिलवटों में ढूंढता रहा नजानें क्या।

नितेश वर्मा

दीवारों के बंद हो जाने से

दीवारों के बंद हो जाने से
ना रूकती है साँसें रोकें जाने से
वो अलसायी दोपहरिया हैं
मेरे खेत, मेरे गाँव की बगानों से
पूछती है शहरों में लड़कियाँ ये
आती हैं घुटन क्या रोशनदानों से
पता है उन्हें क्या वो बेरहम है
मसला यही है बड़े खानदानों से
टूटकर बिखर गया आखिर तू भी
पत्थर जो निकला था चट्टानों से
न है पता ये मंजिल मिलेगी कब
चल रहे है फिर भी पूरे जानों से
तुम बेखौफ जीयो जिन्दगी को
नहीं मानता है कुछ भी मनाने से
दीवारों के बंद हो जाने से
ना रूकती है साँसें रोकें जाने से।

नितेश वर्मा

निगाहें उसकी भींग गयीं हैं

निगाहें उसकी भींग गयीं हैं
तस्वीर बोझिल
शायद कुछ रिहा हुये हैं
कोई कसक सदियों की
कोई घुटन अरसों की
बरस रही हैं बेसब्र ये अब्र
मूसलसल
मगर हैं कुछ और भी
जवाबदेह जिस्म शायद
मगरूर किये हैं
बेहाल से ये हाल उसको
जाने क्यूं वो सुरमई सी
शर्मातीं जो रही थी
अचानक भींग गयीं हैं
निगाहें उसकी भींग गयीं हैं।

नितेश वर्मा

सर्दी की रात

सर्दी की रात
दो जिस्म
ठिठुरते जुबाँ
कुहासे सी
ठंडी बयार
अगन की रात
और फिर
बेवक्त की
बारिश ☔
हाय!
मामला फिर
इस दफे भी
बीच में ही
रह गया।

नितेश वर्मा

अजीब किस्सा सुनाया गया

अजीब किस्सा सुनाया गया
बहोत दिनों के बाद
फिर से उसे बुलाया गया
बैठाया गया.. दुलारा गया..
इश्क़ की आड में
बतियाते हर जज्बात में
हौले-हौले सीने में
खूनी खंज़र उतारा गया
रिहाई के तो सवाल पर
बवाल बड़ा मचाया गया
मुँह की जिंदा जुबाँ को
बेलपटों के जलाया गया
फिर फूँक के उसको
जाने क्यूं
मातम बहोत मनाया गया
अजीब किस्सा सुनाया गया।

नितेश वर्मा

दूर तक सफर ले जा रहा मुझे भी

दूर तक सफर ले जा रहा मुझे भी
रंजो-गम हैं, मगर भा रहा मुझे भी।

कई चीखें ना सुनी मैंने, बेसुध रहा
तेरे बाद था कोई बुला रहा मुझे भी।

एक कहानी खत्म हुई तेरे आने पर
कोई जुबाँ था, रोज गा रहा मुझे भी।

कौन भूल गया है कमरे में रखकर
चेहरा ये आईना दिखा रहा मुझे भी।

तन्हा ही उदासी रात कटनी है वर्मा
बेवक्त आ चाँद बता रहा मुझे भी।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख्याल सा..

एक सुलझी सी जिन्दगी और उसकी उलझी
जुल्फें, कमबख्त ये नज़रें, निगाहों का ठहरना। फिर यादों की गिरफ्त में एक मामूली सी दिन और फिर बेवजह की वो।

नितेश वर्मा ओर और वो।

दो आँखें हर वक़्त पीछे लगीं होती

दो आँखें हर वक़्त पीछे लगीं होती
रोने की भी इजाज़त ना मिलती
और
ना ही कुछ छिपा लेने की
ग़म रिंसता रहता मूसलसल
सदियों की दुआएं.. ये खैरियत
मेरे मौला से की हर शिकायत
रह जाती यहीं पास मेरे
जैसे उसकी गुनाहें
पानी पर लिखी तहरीर हो
और
पढनेंवाला भी हैंरा हो बिलकुल
ये कहनेवाले की तरह
कोई परेशां हैं किसी हैवान के आगे।

नितेश वर्मा

मैंने आशंकित निगाहों से देखा था उसे

मैंने आशंकित निगाहों से देखा था उसे
कुहासे की सर्द सहर में
वो सकुचाती, बेहिस, बेकदर सी
चली जा रही थीं.. जाने किधर
शायद, मुझसे दूर
पर पता नहीं.. जाने क्यूं
क्यूं हर बार उसी नुक्कड़ पर
मिल जाती हैं निगाहें उससे अकसर
क्यूं उसकी कंगन खनक जाती हैं
निगाहें मुझमें डूब जाती हैं अकसर
क्यूं लबों पे सिहरन ठहर जाती हैं
क्यूं वो मुझमें एक जान छोड़ जाती हैं
क्यूं होता है ऐसा
खिल जाती हैं जब भी इस मौसम धूप
और
वो मुस्कुरा कर गुजर जाती हैं
सर्द सुबह की चाय
मुझको फींकी लगने लगती हैं।

नितेश वर्मा और चाय 🍵।

किसी मुश्किल से हम भी लिखने लगे हैं

किसी मुश्किल से हम भी लिखने लगे हैं
पामाल रस्तों से होकर ही चलने लगे हैं।

तौहीन हैं जो मिलती हैं साँसें गिनके हमें
वक्त पे आ खुदा खुदरंग दिखने लगे हैं।

आवारगी का आलम ना सर से उतरा हैं
ठोकरें खाके भी तो जाँ मचलने लगे हैं।

गुनाह कर दिया है साहिब तेरे शहर में
मेरी सज़ा सुनकर सब संभलने लगे हैं।

अफवाहें बस स्याह रातों में उड़ती रही
सुबहा देखा कुछ सितारें ढलने लगे हैं।

मेरी मुस्कुराहटों का हिसाब हुआ वर्मा
तेरे जाने के बाद हम भी बदलने लगे हैं।

नितेश वर्मा

इतनी खामोशी हो, अच्छी नहीं

इतनी खामोशी हो, अच्छी नहीं
रात गुजरी जो, वो अच्छी नहीं।

दिल भी परेशान था, जिस्म भी
बात जो चली थी, अच्छी नहीं।

थीं रात भर, वो सवाली निगाहें
सामने सहर, लगीं अच्छी नहीं।

हयां, चाँद ओढके लिपटा रहा
ईश्क में ये चादर, अच्छी नहीं।

तो ये आसमां पुराना है, मगर
बारिश भी लगी, ये अच्छी नहीं।

नितेश वर्मा और अच्छी नहीं।

अपने ही बातों पे दम निकलने लगे हैं

अपने ही बातों पे दम निकलने लगे हैं
घर से निकल के मकाबी चलने लगे हैं।

पता ले जाती हैं दूर वीरानियों में वर्मा
तेरा ख्याल कर कदम संभलने लगे हैं।

नितेश वर्मा

देख लू जो तुझको करार आ जाता हैं

देख लू जो तुझको करार आ जाता हैं
पतझड़ में कोई यूं बहार आ जाता हैं।

तेरी नज़रें झुकीं जुल्फों के संग जभ्भी
मेरे दिल में कोई त्यौहार आ जाता हैं।

आँखों में एक कतरा पानी का देखते
आँसू मुझमें भी बेकरार आ जाता हैं।

फूल सा जो खिल जाती मुझे देखकर
लगता वो धूप मेरे दीवार आ जाता हैं।

बंद रहने लगी है कोई तस्वीर मुझमें
जबसे पते पर कोई तार आ जाता हैं।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख्याल सा..

जैसे कोई नमीं सी रह गयी हो आँखों में
वो ठहरीं हैं मुझमें वैसे ही मेरे सायों में
दिल निकाल के जब भी अलग कर देता हूँ उससे
एक जिन्दगी बेवजह चलती हैं इन साँसों में।

नितेश वर्मा और बेवजह।

कहानी के किरदारों में ढालें गये हैं

कहानी के किरदारों में ढालें गये हैं
फिर क्यूं आज घर से निकालें गये हैं।

हर तस्वीर से त'आरूफ़ हो अगर तो
ढूंढे खुदको लग सब पर जालें गये हैं।

दो जिस्म जो जल रहा था सदियों से
कहीं सुना बहुत जतन से पालें गये हैं।

फिर वहीं बस्ती है बेगुनाहों की वर्मा
तुम जो गुजरें कई सर संभालें गये हैं।

नितेश वर्मा

अजीब फ़ासलों में सिमट के रह गया

अजीब फ़ासलों में सिमट के रह गया
दूर क्या हुआ वो मुझसे छूट ही गया।

नाज-ए-प्यार से संवारा था उसे कभी
आँधी ये चली कैसी पेड़ टूट ही गया।

सायों के कोने में गम गुनगुनाती रही
सिराहनें रात आँखों से फूट ही गया।

वो जिन्दगी की मसाइल से परेशां हैं
ख्वाब ये भी कोई मेरा लूट ही गया।

नितेश वर्मा

जिन्दगी इन कड़वाहटों में गुजर गयीं

जिन्दगी इन कड़वाहटों में गुजर गयीं
महज़ एक रोटी ना मिली तो मर गयीं।

फिर से कल वहीं मार खाने-पीने की
गरीबों की ये बात जुबाँ से उतर गयीं।

कोई शक्लों-सूरतों की मोहताज नहीं
प्यासी हुयीं जुबाँ तो घटा बिखर गयीं।

परिंदे सा हाल है इस मुल्क का वर्मा
शाम का बसेरा सुबह कहीं और गयीं।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख्याल सा

उसके करीब होने के एहसास भर से मानों जैसे सदियों की रंजिशें मिट जाती हैं, बेचैनियाँ स्थिर हो जाती हैं, एक सुकून.. एक ठहराव.. उसकी जुल्फों तलें उन सुरमई आँखों में डूबकर मिलती हैं जिसका जिक्र कभी जुबानी नहीं होता। कुछ ख्याल बस दिल से उतरकर पन्नों में सिमट जाते हैं.. जब भी तुम्हें लिखी कोई ख़त खुलती हैं.. ख्यालों में बस तुम बस जाती हो और ये मेरी तमाम मसरूफ़ सी जिन्दगी सिमटकर बस तुम हो जाती हैं।

कोई ख्याल, कोई बहाना तुमसा ना बना
वर्मा कोई और यूं मिसाल तुमसा ना बना

नितेश वर्मा

ऐसा मौसम साल में एक बार तो आता ही हैं

ऐसा मौसम साल में एक बार तो आता ही हैं
जब बच्चों के रंग में ये देश भी रंगा जाता हैं।

बहुत खुश हुआ करते है वो नौकरीपेशा भी
छुट्टी के दिन जब दिल बच्चा जुबाँ हो जाता हैं।

नितेश वर्मा और बच्चा जुबाँ।

गुजरें यूं ही हर रात बेमर्जी तो अच्छा है

गुजरें यूं ही हर रात बेमर्जी तो अच्छा है
दिल मेरा ये अब भी जज्बाती बच्चा है।

नितेश वर्मा और बच्चे।

दो खामोश से लोग मिले इस बार भी क्यूं

दो खामोश से लोग मिले इस बार भी क्यूं
बेचैन हैं साँसें बारिशों में इस बार भी क्यूं।

सवालों में निगाहें भी घुम जाती हैं उसकी
बेतुकी सारी जेहनी बात इस बार भी क्यूं।

हमदर्दी में हमसे इश्क़ कर बैठे वो वर्मा
दिल पिघला हैं पत्थर तू इस बार भी क्यूं।

नितेश वर्मा

अपनी सारी जुल्फों को सुलझाकर

अपनी सारी जुल्फों को सुलझाकर
कांधे की एक ओर
अपनी नज़रें झुकाकर जब भी
समेट लेती हो तुम उनको
मैं एक तस्वीर उतार लेता हूँ
जो तुम्हारे चले भी जाने पर
मुझमें बनती रहती हैं बेफिक्र
और मैं उनमें गुजरता हूँ बेसब्र
कोई वास्ता नहीं होता हैं तुमसे
कोई गवाह नहीं होती हैं मुझमें
बस तुम होती हो मुझमें
बात जब भी यादों की
उतरती हैं तुमसे होकर पन्नों पर।

नितेश वर्मा

हम ढूंढ रहे खुद को अपने ही कामयाबी में

हम ढूंढ रहे खुद को अपने ही कामयाबी में
और कोई किसी को मिल गया गुमनामी में।

ऐसा क्यूं होता हैं हरेक दफा मिलके उससे
वो शर्मां जाती हैं अपनी ही हर बेईमानी में।

नितेश वर्मा

उन अँधेरों से कह दो कहीं और जाये

उन अँधेरों से कह दो कहीं और जाये
शहर मेरे जुगनूओं का संसार आया है।

शुभ दीपावली की हार्दिक मुबारकबाद।

शुभ दीवाली

शुभ दीवाली के पावन अवसर पर अनेकानेक शुभकामनाओं के संग हम आपके मंगलमय और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। आप सभी पर माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे। - शुभ दीवाली -

फिर से सजे घर-आँगन
बहे पुरवाई फिर से
फिर से हो दूर दरिद्रता
आयें खुशहाली फिर से
हममें-तुममें लौ जले
बाती-बाती सौ जले
दूर अंधकार हो
रोशन जहां हर ओर से
छल-कपट, ईष्या-द्वेष
अपराध और अत्याचार
इन सबका भी नाश हो
गूंजे ये सच्चाई जोर से
दीयों में चेहरे हो कल के
सपनें सुनहरे हो मचलते
रोग प्रेम का लग जावें
ये दीवाली मेरी हो तुमसे
फिर से सजे घर-आँगन
बहे पुरवाई फिर से
फिर से हो दूर दरिद्रता
आयें खुशहाली फिर से।

नितेश वर्मा और दीवाली।

और भी हँसीं लगती हो तुम

और भी हँसीं लगती हो तुम
खुली जुल्फें, मचलती आँखें,
और
उलझती बातों के संग
जब भी करीब आती हो तुम
एक आवाज होती है मुझमें
तुम्हारे आने पर
और
खनकती रहती है
तुम्हारे चले भी जाने पर
फिर एक वहीं
उदासी घेरे रहतीं है मुझमें
हर वक्त, लेकिन..
उस तस्वीर से
जब भी निकल आती हो तुम
और भी हँसीं लगती हो तुम।

नितेश वर्मा और हँसीं तुम।

Tuesday, 3 November 2015

नितेश वर्मा और रिश्ते

अभी वो अपनी यादों से निकल ही पायी थी कि एक जोर का धक्का उसके काँधें पर लगा। वो बौखलाते हुये पीछे मुड़ी ही थी कि उसका गुस्सा फौरन गायब हो गया उसका ड़रा सहमा बेटा बड़ी मासूमियत से उसके सामने खड़ा था।
फिर उसके मासूमियत पर उसने मुस्कुरा दिया और उसका बेटा दौड़ के उसकी बाहों में आ गया।

दरअसल रिश्ते ऐसे ही होते हैं कभी थोड़ी सी देर की दर्द को भूलाकर असीम सुख की प्राप्ति होती हैं। ऐसा हर बार नहीं होता परंतु एक बार जरूर होता है, बस इंतजार रहती है तो ऐसे ही रिश्ते की। माँ का दर्द तो बस माँ ही जानती है, हम शायद भूल जाते हैं मगर सबसे अहम हमारी जिन्दगी में ये रिश्ते ही होते है।

नितेश वर्मा और रिश्ते।


ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं

ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं
हर घाव बिन मरहम के हैं
फिर से
खूनी खंजर चलाये गये हैं
मासूम आँखें जलाये गये हैं
चीखें, चीत्कारें फिर से
फिर से कत्लों का तमाशा
खून-खराबे फिर से
फिर से प्रचंड मजहबी बातें
फिर से शक्लों पे दाग
फिर से वहीं एक बीती बात
अंधी दुनिया, बेचारी समाज
हैं सड़कों पर रक्त-प्रवाह
जाने क्यूं
फिर से हम सताये गये हैं
ज़ख्म फिर से कुरेदें गये हैं।

नितेश वर्मा और फिर से।

और भी हँसीं लगती हो तुम

और भी हँसीं लगती हो तुम
खुली जुल्फें, मचलती आँखें,
और
उलझती बातों के संग
जब भी करीब आती हो तुम
एक आवाज होती है मुझमें
तुम्हारे आने पर
और
खनकती रहती है
तुम्हारे चले भी जाने पर
फिर एक वहीं
उदासी घेरे रहतीं है मुझमें
हर वक्त, लेकिन..
उस तस्वीर से
जब भी निकल आती हो तुम
और भी हँसीं लगती हो तुम।

नितेश वर्मा और हँसीं तुम।


Monday, 2 November 2015

तेरी गली से नहीं गुजरता है दिल

तेरी गली से नहीं गुजरता है दिल
अब मुझमें ही बंधा रहता है दिल

फिर सोचता है नजाने क्यूं तुझको
प्रेम की बातें किया करता है दिल

तुम नहीं, तो कुछ भी नहीं मुझमें
संग होके तेरे ही मचलता हैं दिल

लौट के आ गयी वो सुबह हो तुम
आँख के किनारे से बहता है दिल

थम गयीं थीं साँसों की कहानी भी
वो गयीं औ' अब भी रोता है दिल

मुझको याद नहीं दरिया सूखे क्यूं
वर्मा की बातें कहाँ कहता है दिल

नितेश वर्मा और दिल।

यूं ही एक ख्याल सा

बरसों बाद उसकी चुप्पी टूटी एक सवाल को लेकर - आखिर क्यूं, क्यूं तुम चले गये.. मुझमें एक सवाल छोड़कर और अपनी बेपनाह मुहब्बत लेकर।
वो बहोत परेशान थीं और अब मैं भी हूँ परेशान, मगर उससे थोड़ा कम.. उसकी जुल्फें भी उसे परेशान करती हैं, लेकिन मेरे नहीं। 😊

नितेश वर्मा

जब भी मैं

जब भी मैं कोई कहानी लिखने की सोचता हूँ तो तुम पन्नों पे उतर जाती हो। अकसर मैं इस उलझन में रहता हूँ कि आखिर वजह क्या है.. और तुम्हारे में आखिर वो बात कौन सी है जो मुझे तुम्हारे करीब ले जाती हैं.. क्यूं हर पल मेरे यादों में तुम दौड़ती रहती हो, क्यूं मैं तुम्हारा दीवाना बना फिरा करता हूँ। हाँ, ये मुझे पता है तुम बहोत खूबसूरत हो.. सुनता रहता हूँ अकसर मैं तुम्हारे बारें में.. जब भी लंच-टाइम में तुम मेरे करीब से गुजर जाती हो, तुम्हारी जुल्फें मेरे चेहरे पे बिखर जाती है और मैं उनमें घंटों कैद रहता हूँ.. और तुम्हारा जिक्र मुझमें गुजरता रहता है बिलकुल एक शांत जल-प्रवाह की तरह। जब कभी तुम साड़ी में आफिस आती हो तो फिर सबकी नजरों से खुद को छिपाकर मैं भी तुम्हें देखने की एक पूरी कोशिश करता हूँ.. और तुम्हारी निगाहों से जब मेरी निगाहें टकरा जाती है.. मैं घंटों शर्म से मरा जाता हूँ खुद में। तुम शायद मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत याद हो.. शायद इसलिए मैं तुम्हें भूला नहीं पाता या कोई और वजह हो.. मुझे पता नहीं, लेकिन जब भी मैं कोई कहानी लिखने की सोचता हूँ तो तुम पन्नों पे उतर जाती हो।

नितेश वर्मा और तुम।