Monday, 30 November 2015

उसे भी कहाँ फुरसत हैं जो सुने कहानी तेरी

उसे भी कहाँ फुरसत हैं जो सुने कहानी तेरी
दो लफ्जों में बयाँ करो जो भी हैं बयानी तेरी।

तुमसे बढकर और कुछ भी नहीं हैं मुझमें यूं
फिर क्यूं यूं कर जाती हैं निगाहें बेईमानी तेरी।

महज़ मौकापरस्ती ही नहीं हैं सवालों में तेरे
एक कसक उठी जब उठी यूं परेशानी तेरी।

मेयारी सुकून के सारे दौर गुजर चुके हैं वर्मा
खून खौलता हैं जभ्भी होती हैं मनमानी तेरी।

नितेश वर्मा


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