निगाहें उसकी भींग गयीं हैं
तस्वीर बोझिल
शायद कुछ रिहा हुये हैं
कोई कसक सदियों की
कोई घुटन अरसों की
बरस रही हैं बेसब्र ये अब्र
मूसलसल
मगर हैं कुछ और भी
जवाबदेह जिस्म शायद
मगरूर किये हैं
बेहाल से ये हाल उसको
जाने क्यूं वो सुरमई सी
शर्मातीं जो रही थी
अचानक भींग गयीं हैं
निगाहें उसकी भींग गयीं हैं।
नितेश वर्मा
तस्वीर बोझिल
शायद कुछ रिहा हुये हैं
कोई कसक सदियों की
कोई घुटन अरसों की
बरस रही हैं बेसब्र ये अब्र
मूसलसल
मगर हैं कुछ और भी
जवाबदेह जिस्म शायद
मगरूर किये हैं
बेहाल से ये हाल उसको
जाने क्यूं वो सुरमई सी
शर्मातीं जो रही थी
अचानक भींग गयीं हैं
निगाहें उसकी भींग गयीं हैं।
नितेश वर्मा
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