Monday, 2 November 2015

जब भी मैं

जब भी मैं कोई कहानी लिखने की सोचता हूँ तो तुम पन्नों पे उतर जाती हो। अकसर मैं इस उलझन में रहता हूँ कि आखिर वजह क्या है.. और तुम्हारे में आखिर वो बात कौन सी है जो मुझे तुम्हारे करीब ले जाती हैं.. क्यूं हर पल मेरे यादों में तुम दौड़ती रहती हो, क्यूं मैं तुम्हारा दीवाना बना फिरा करता हूँ। हाँ, ये मुझे पता है तुम बहोत खूबसूरत हो.. सुनता रहता हूँ अकसर मैं तुम्हारे बारें में.. जब भी लंच-टाइम में तुम मेरे करीब से गुजर जाती हो, तुम्हारी जुल्फें मेरे चेहरे पे बिखर जाती है और मैं उनमें घंटों कैद रहता हूँ.. और तुम्हारा जिक्र मुझमें गुजरता रहता है बिलकुल एक शांत जल-प्रवाह की तरह। जब कभी तुम साड़ी में आफिस आती हो तो फिर सबकी नजरों से खुद को छिपाकर मैं भी तुम्हें देखने की एक पूरी कोशिश करता हूँ.. और तुम्हारी निगाहों से जब मेरी निगाहें टकरा जाती है.. मैं घंटों शर्म से मरा जाता हूँ खुद में। तुम शायद मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत याद हो.. शायद इसलिए मैं तुम्हें भूला नहीं पाता या कोई और वजह हो.. मुझे पता नहीं, लेकिन जब भी मैं कोई कहानी लिखने की सोचता हूँ तो तुम पन्नों पे उतर जाती हो।

नितेश वर्मा और तुम।

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