अपनी सारी जुल्फों को सुलझाकर
कांधे की एक ओर
अपनी नज़रें झुकाकर जब भी
समेट लेती हो तुम उनको
मैं एक तस्वीर उतार लेता हूँ
जो तुम्हारे चले भी जाने पर
मुझमें बनती रहती हैं बेफिक्र
और मैं उनमें गुजरता हूँ बेसब्र
कोई वास्ता नहीं होता हैं तुमसे
कोई गवाह नहीं होती हैं मुझमें
बस तुम होती हो मुझमें
बात जब भी यादों की
उतरती हैं तुमसे होकर पन्नों पर।
नितेश वर्मा
कांधे की एक ओर
अपनी नज़रें झुकाकर जब भी
समेट लेती हो तुम उनको
मैं एक तस्वीर उतार लेता हूँ
जो तुम्हारे चले भी जाने पर
मुझमें बनती रहती हैं बेफिक्र
और मैं उनमें गुजरता हूँ बेसब्र
कोई वास्ता नहीं होता हैं तुमसे
कोई गवाह नहीं होती हैं मुझमें
बस तुम होती हो मुझमें
बात जब भी यादों की
उतरती हैं तुमसे होकर पन्नों पर।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment