कहानी के किरदारों में ढालें गये हैं
फिर क्यूं आज घर से निकालें गये हैं।
हर तस्वीर से त'आरूफ़ हो अगर तो
ढूंढे खुदको लग सब पर जालें गये हैं।
दो जिस्म जो जल रहा था सदियों से
कहीं सुना बहुत जतन से पालें गये हैं।
फिर वहीं बस्ती है बेगुनाहों की वर्मा
तुम जो गुजरें कई सर संभालें गये हैं।
नितेश वर्मा
फिर क्यूं आज घर से निकालें गये हैं।
हर तस्वीर से त'आरूफ़ हो अगर तो
ढूंढे खुदको लग सब पर जालें गये हैं।
दो जिस्म जो जल रहा था सदियों से
कहीं सुना बहुत जतन से पालें गये हैं।
फिर वहीं बस्ती है बेगुनाहों की वर्मा
तुम जो गुजरें कई सर संभालें गये हैं।
नितेश वर्मा
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