Tuesday, 3 November 2015

नितेश वर्मा और रिश्ते

अभी वो अपनी यादों से निकल ही पायी थी कि एक जोर का धक्का उसके काँधें पर लगा। वो बौखलाते हुये पीछे मुड़ी ही थी कि उसका गुस्सा फौरन गायब हो गया उसका ड़रा सहमा बेटा बड़ी मासूमियत से उसके सामने खड़ा था।
फिर उसके मासूमियत पर उसने मुस्कुरा दिया और उसका बेटा दौड़ के उसकी बाहों में आ गया।

दरअसल रिश्ते ऐसे ही होते हैं कभी थोड़ी सी देर की दर्द को भूलाकर असीम सुख की प्राप्ति होती हैं। ऐसा हर बार नहीं होता परंतु एक बार जरूर होता है, बस इंतजार रहती है तो ऐसे ही रिश्ते की। माँ का दर्द तो बस माँ ही जानती है, हम शायद भूल जाते हैं मगर सबसे अहम हमारी जिन्दगी में ये रिश्ते ही होते है।

नितेश वर्मा और रिश्ते।


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