एक सुलझी सी जिन्दगी और उसकी उलझी
जुल्फें, कमबख्त ये नज़रें, निगाहों का ठहरना। फिर यादों की गिरफ्त में एक मामूली सी दिन और फिर बेवजह की वो।
नितेश वर्मा ओर और वो।
जुल्फें, कमबख्त ये नज़रें, निगाहों का ठहरना। फिर यादों की गिरफ्त में एक मामूली सी दिन और फिर बेवजह की वो।
नितेश वर्मा ओर और वो।
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